ख़ामुशी Poetry (page 7)
बहुत ज़ी-फ़हम हैं दुनिया को लेकिन कम समझते हैं!
बाक़र मेहदी
रात दिन इक बेबसी ज़िंदा रही
बलवान सिंह आज़र
तिश्नगी-ए-लब पे हम अक्स-ए-आब लिक्खेंगे
बख़्श लाइलपूरी
ज़रूरतों की हमाहमी में जो राह चलते भी टोकती है वो शाइ'री है
बद्र-ए-आलम ख़लिश
रौशनी ही रौशनी है शहर में
बदीउज़्ज़माँ ख़ावर
जले हैं दिल न चराग़ों ने रौशनी की है
बदीउज़्ज़माँ ख़ावर
उठा के मेरे ज़ेहन से शबाब कोई ले गया
अज़ीज़ तमन्नाई
रसूल-ए-काज़िब
अज़ीज़ क़ैसी
दुनिया को वलवला दिल-ए-नाशाद से हुआ
अज़ीज़ लखनवी
दिल कुश्ता-ए-नज़र है महरूम-ए-गुफ़्तुगू हूँ
अज़ीज़ लखनवी
मआल-ए-दोस्ती कहिए हदीस-ए-मह-वशाँ कहिए
अज़हर सईद
दरीचे सो गए शब जागती है
अज़हर नैयर
उस लब की ख़ामुशी के सबब टूटता हूँ मैं
अज़हर फ़राग़
समेट लो मुझे अपनी सदा के हल्क़ों में
आज़ाद गुलाटी
तुम्हारे पास रहें हम तो मौत भी क्या है
आज़ाद गुलाटी
मैं अपने आप से इक खेल करने वाला हूँ
आज़ाद गुलाटी
जो ग़म में जलते रहे उम्र-भर दिया बन कर
आज़ाद गुलाटी
सफ़र में फ़ासलों के साथ बादबान खो दिया
अय्यूब ख़ावर
अजब ख़ुलूस अजब सादगी से करता है
अतुल अजनबी
कौन गुज़रा था मेहराब-ए-जाँ से अभी ख़ामुशी शोर भरता हुआ
अतीक़ुल्लाह
एक वो ही शख़्स मुझ को अब गवारा भी नहीं
आतिफ़ ख़ान
रात और रेल
असरार-उल-हक़ मजाज़
वो शख़्स जो नज़र आता था हर किसी की तरह
असरार ज़ैदी
इस की जुदाई कैसे कमालात कर गई
अशरफ़ शाद
मैं सीखता रहा इक उम्र हाव-हू करना
अशफ़ाक़ नासिर
एक नया वाक़िआ इश्क़ में क्या हो गया
अशफ़ाक़ आमिर
अंधेरे में तजस्सुस का तक़ाज़ा छोड़ जाना है
अशअर नजमी
इस सफ़र में नीम-जाँ मैं भी नहीं तू भी नहीं
अशअर नजमी
हम तह-ए-दरिया तिलिस्मी बस्तियाँ गिनते रहे
अशअर नजमी
अंधेरे में तजस्सुस का तक़ाज़ा छोड़ जाना है
अशअर नजमी
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