ख़ामुशी Poetry (page 1)

दूसरा जन्म

बलराज कोमल

दस्तूर साज़ी की कोशिश

रज़ा नक़वी वाही

ज़ुहर-ए-आशिक़ी से डरता हूँ

दाऊद मोहसिन

न तीरगी के लिए हूँ न रौशनी के लिए

ऐन सलाम

मैं किस से पूछता कि भला क्या कमी हुई

नईम गिलानी

तामील-ए-वफ़ा का अहद-नामा

ज़ेहरा निगाह

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ज़ीशान साहिल

हैं काम-काज इतने बदन से लिपट गए

ज़ीशान साजिद

चाँद की बेबसी को समझूँगी

ज़हरा क़रार

चाँद की बेबसी को समझूँगी

ज़हरा क़रार

आप को क्यूँ नहीं लगा पत्थर

ज़हरा क़रार

वो हर्फ़-ओ-सौत-ओ-सदा

ज़ाहिदा ज़ैदी

दार-उल-अमान के दरवाज़े पर

ज़ाहिद मसूद

ख़्वाब-गाहों से अज़ान-ए-फ़ज्र टकराती रही

ज़हीर सिद्दीक़ी

जब ख़ामुशी ही बज़्म का दस्तूर हो गई

ज़हीर काश्मीरी

परवाना जल के साहब-ए-किरदार बन गया

ज़हीर काश्मीरी

इश्क़ इक हिकायत है सरफ़रोश दुनिया की

ज़हीर काश्मीरी

गुल-अफ़्शानी के दम भरती है चश्म-ए-ख़ूँ-फ़िशाँ क्या क्या

ज़हीर देहलवी

अभी से आ गईं नाम-ए-ख़ुदा हैं शोख़ियाँ क्या-क्या

ज़हीर देहलवी

ये नहीं कहता कि दोबारा वही आवाज़ दे

ज़फ़र इक़बाल

रौशनी परछाईं पैकर आख़िरी

ज़फ़र गोरखपुरी

पुकारे जा रहे हो अजनबी से चाहते क्या हो

ज़फ़र गोरखपुरी

मिसाल-ए-अक्स मिरे आइने में ढलता रहा

यासमीन हमीद

लम्स-ए-तिश्ना-लबी से गुज़री है

यासमीन हबीब

चाहती है आख़िर क्या आगही ख़ुदा-मालूम

याक़ूब उस्मानी

बज़्म में यूँ तो सभी थे फिर भी 'आमिर' देर तक

याक़ूब आमिर

चंद घंटे शोर ओ ग़ुल की ज़िंदगी चारों तरफ़

याक़ूब आमिर

गुल ने ख़ुशबू को तज दिया न रहा

वज़ीर आग़ा

दिल-ए-ख़िल्क़त-ए-ख़ुदा को सनमा जला न चंदाँ

वलीउल्लाह मुहिब

बुलबुल बजाए अपने तुझे हम-नवा से बहस

वलीउल्लाह मुहिब

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