ख़ामुशी Poetry (page 6)

सौत क्या शय है ख़ामुशी क्या है

फ़रहत शहज़ाद

सौत क्या शय है ख़ामुशी क्या है

फ़रहत शहज़ाद

कैसी बला-ए-जाँ है ये मुझ को बदन किए हुए

फ़रहत एहसास

निकल के घर से और मैदाँ में आ के

फ़राज़ सुल्तानपूरी

ये मातम-ए-वक़्त की घड़ी है

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

तुम ये कहते हो अब कोई चारा नहीं

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मुलाक़ात

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

मिरे दर्द को जो ज़बाँ मिले

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ख़ुशा ज़मानत-ए-ग़म

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ग़ुबार-ए-ख़ातिर-ए-महफ़िल ठहर जाए

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

एक मंज़र

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

बुनियाद कुछ तो हो

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

आए कुछ अब्र कुछ शराब आए

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

आहिस्ता से गुज़रो

फ़हीम शनास काज़मी

जिस्म ही पामाल हो जाए तो सर क्या कीजिए

एज़ाज़ अफ़ज़ल

आसमाँ खोल दिया पैरों में राहें रख दीं

धीरेंद्र सिंह फ़य्याज़

रात

दाऊद ग़ाज़ी

तमन्ना का दूसरा क़दम

दानियाल तरीर

जो हो सकता है उस से वो किसी से हो नहीं सकता

दाग़ देहलवी

खुलती है चाँदनी जहाँ वो कोई बाम और है

डी. राज कँवल

मुस्तक़िल रोने से दिल की बे-कली बढ़ जाएगी

भारत भूषण पन्त

मिरी ही बात सुनती है मुझी से बात करती है

भारत भूषण पन्त

दयार-ए-ज़ात में जब ख़ामुशी महसूस होती है

भारत भूषण पन्त

चाहतों के ख़्वाब की ताबीर थी बिल्कुल अलग

भारत भूषण पन्त

उन को दिमाग़-ए-पुर्सिश-ए-अहल-ए-मेहन कहाँ

बेखुद बदायुनी

सब की मौजूदगी समझता है

बशीर महताब

वो सितम-परवर ब-चश्म अश्क-बार आ ही गया

बशीर फ़ारूक़

हम बयाबानों में घूमे शहर की सड़कों पे टहले

बशीर मुंज़िर

ब-हर-उनवाँ मोहब्बत को बहार-ए-ज़िंदगी कहिए

बशर नवाज़

ख़ामुशी

बाक़र मेहदी

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