सौत क्या शय है ख़ामुशी क्या है
ग़म किसे कहते हैं ख़ुशी क्या है
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मुझ पे हो जाए तिरी चश्म-ए-करम गर पल भर
हम से तंहाई के मारे नहीं देखे जाते
तुझ को खो कर मुझ पर वो भी दिन आए
देख के जिस को दिल दुखता था
दो झुकी आँखों का पहुँचा जब मिरे दिल को सलाम
नहीं है अब कोई रस्ता नहीं है
ये ज़मीं ख़्वाब है आसमाँ ख़्वाब है
मैं अपने-आप से बरहम था वो ख़फ़ा मुझ से
ज़िंदगी कट गई मनाते हुए
परस्तिश की है मेरी धड़कनों ने