मुझ पे हो जाए तिरी चश्म-ए-करम गर पल भर
फिर मैं ये दोनों जहाँ ''बात ज़रा सी'' लिक्खूँ
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Jaun Eliya
Gulzar
Parveen Shakir
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(795) Peoples Rate This
सौत क्या शय है ख़ामुशी क्या है
तुझ को खो कर मुझ पर वो भी दिन आए
नहीं है अब कोई रस्ता नहीं है
ज़िंदगी कट गई मनाते हुए
हयात को तिरी दुश्वार किस तरह करता
शाम कहती है कोई बात जुदा सी लिक्खूँ
देख के जिस को दिल दुखता था
ये ज़मीं ख़्वाब है आसमाँ ख़्वाब है
दश्त-ए-वहशत ने फिर पुकारा है
तिरा वजूद गवाही है मेरे होने की
इतनी पी जाए कि मिट जाए मैं और तू की तमीज़