तुझ को खो कर मुझ पर वो भी दिन आए
छुप न सका दुख पीछे कई नक़ाबों के
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मैं अपने-आप से बरहम था वो ख़फ़ा मुझ से
नहीं है अब कोई रस्ता नहीं है
आँख को जकड़े थे कल ख़्वाब अज़ाबों के
हयात को तिरी दुश्वार किस तरह करता
ये ज़मीं ख़्वाब है आसमाँ ख़्वाब है
देख के जिस को दिल दुखता था
तिरा वजूद गवाही है मेरे होने की
दो झुकी आँखों का पहुँचा जब मिरे दिल को सलाम
दश्त-ए-वहशत ने फिर पुकारा है
परस्तिश की है मेरी धड़कनों ने
बात अपनी अना की है वर्ना
जब तक चराग़-ए-शाम-ए-तमन्ना जले चलो