देख के जिस को दिल दुखता था
वो तस्वीर जला दी हम ने
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मैं शायद तेरे दुख में मर गया हूँ
हर्फ़ जैसे हो गए सारे मुनाफ़िक़ एक दम
हयात को तिरी दुश्वार किस तरह करता
हम से तंहाई के मारे नहीं देखे जाते
तुझ को खो कर मुझ पर वो भी दिन आए
जब तक चराग़-ए-शाम-ए-तमन्ना जले चलो
सौत क्या शय है ख़ामुशी क्या है
परस्तिश की है मेरी धड़कनों ने
ये ज़मीं ख़्वाब है आसमाँ ख़्वाब है
मुझ पे हो जाए तिरी चश्म-ए-करम गर पल भर
आँख को जकड़े थे कल ख़्वाब अज़ाबों के
अज़ीज़ मुझ को हैं तूफ़ान साहिलों से सिवा