खता Poetry (page 9)
हम जो मिल बैठें तो यक जान भी हो सकते हैं
चरख़ चिन्योटी
आइना कौन है कुछ पता तो चले
चरण सिंह बशर
दिलकशी नाम को भी आलम-ए-इम्काँ में नहीं
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
गुनह-गारों में शामिल हैं गुनाहों से नहीं वाक़िफ़
चकबस्त ब्रिज नारायण
उन्हें ये फ़िक्र है हर दम नई तर्ज़-ए-जफ़ा क्या है
चकबस्त ब्रिज नारायण
अगर दुश्मन की थोड़ी सी मरम्मत और हो जाती
बूम मेरठी
न चिलमनों की हसीं सरसराहटें होंगी
बेकल उत्साही
शादी ओ अलम सब से हासिल है सुबुकदोशी
बेदम शाह वारसी
में ग़श में हूँ मुझे इतना नहीं होश
बेदम शाह वारसी
खींची है तसव्वुर में तस्वीर-ए-हम-आग़ोशी
बेदम शाह वारसी
फ़स्ल-ए-बहार जाने ये क्या गुल कतर गई
बेबाक भोजपुरी
बख़्त क्या जाने भला या कि बुरा होता है
बेबाक भोजपुरी
कोई मेयार-ए-मोहब्बत न रहा मेरे बा'द
बासित भोपाली
चले जाना मगर सुन लो मिरे दिल में ये हसरत है
बशीर महताब
सोचा नहीं अच्छा बुरा देखा सुना कुछ भी नहीं
बशीर बद्र
ख़ून पत्तों पे जमा हो जैसे
बशीर बद्र
बे-ख़ुदी में ले लिया बोसा ख़ता कीजे मुआफ़
ज़फ़र
मैं हूँ आसी कि पुर-ख़ता कुछ हूँ
ज़फ़र
क्या कहूँ दिल माइल-ए-ज़ुल्फ़-ए-दोता क्यूँकर हुआ
ज़फ़र
ख़्वाह कर इंसाफ़ ज़ालिम ख़्वाह कर बेदाद तू
ज़फ़र
वतन
अज़मतुल्लाह ख़ाँ
उस ने मिरे मरने के लिए आज दुआ की
अज़ीज़ वारसी
आतिश-ए-ख़ामोश
अज़ीज़ लखनवी
साफ़ बातिन देर से हैं मुंतज़िर
अज़ीज़ लखनवी
इस वहम की इंतिहा नहीं है
अज़ीज़ लखनवी
हुस्न-ए-आलम-सोज़ ना-महदूद होना चाहिए
अज़ीज़ लखनवी
शोख़ी उफ़-रे तिरी नज़र की
अज़ीज़ हैदराबादी
तस्बीह-ए-कुमरी सर्व-ए-सनोबर समेट लो
अज़हर हाश्मी
दरमियान-ए-गुनाह-ओ-सवाब आदमी
आतिफ़ ख़ान
ख़्वाब की दिल्ली
अता आबिदी
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