खता Poetry (page 7)

आ के वो मुझ ख़स्ता-जाँ पर यूँ करम फ़रमा गया

हमीद जालंधरी

आगे पीछे उस का अपना साया लहराता रहा

हकीम मंज़ूर

रुजूअ बंदा की है इस तरह ख़ुदा की तरफ़

हैदर अली आतिश

हम को दिखा दिखा के ग़ैरों के इत्र मलना

हफ़ीज़ जौनपुरी

रक़्क़ासा

हफ़ीज़ जालंधरी

तीर चिल्ले पे न आना कि ख़ता हो जाना

हफ़ीज़ जालंधरी

कोई चारा नहीं दुआ के सिवा

हफ़ीज़ जालंधरी

गुमराह कह के पहले जो मुझ से ख़फ़ा हुए

हफ़ीज़ बनारसी

तुम अज़ीज़ और तुम्हारा ग़म भी अज़ीज़

हादी मछलीशहरी

मुशीर

हबीब जालिब

हैं धब्बे तेग़-ए-क़ातिल के जिसे धोने नहीं देते

हबीब आरवी

वक़ार दे के कभी बे-वक़ार मत करना

गुहर खैराबादी

दुआएँ माँगीं हैं मुद्दतों तक झुका के सर हाथ उठा उठा कर

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

हो जुदा ऐ चारा-गर है मुझ को आज़ार-ए-फ़िराक़

ग़ुलाम मौला क़लक़

जुनूँ में देर से ख़ुद को पुकारता हूँ मैं

ग़नी एजाज़

क्यूँ न ठहरें हदफ़-ए-नावक-ए-बे-दाद कि हम

ग़ालिब

शिकवे के नाम से बे-मेहर ख़फ़ा होता है

ग़ालिब

इब्न-ए-मरयम हुआ करे कोई

ग़ालिब

आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए

ग़ालिब

देते न दिल जो तुम को तो क्यूँ बनती जान पर

जोर्ज पेश शोर

पैक-ए-ख़याल भी है अजब क्या जहाँ-नुमा

जोर्ज पेश शोर

रह-ए-इश्क़ में ग़म-ए-ज़िंदगी की भी ज़िंदगी सफ़री रही

गणेश बिहारी तर्ज़

चेहरे मकान राह के पत्थर बदल गए

फ़ुज़ैल जाफ़री

कुत्तों का मुशाएरा

फ़ुर्क़त काकोरवी

ज़ालिम है वो ऐसा कि जफ़ा भी नहीं करता

फ़िरदौस गयावी

फिर कभी ये ख़ता नहीं करना

फ़िरदौस गयावी

मुझ को मारा है हर इक दर्द ओ दवा से पहले

फ़िराक़ गोरखपुरी

मय-कदे में आज इक दुनिया को इज़्न-ए-आम था

फ़िराक़ गोरखपुरी

क़दम क़दम पे दोनों जुर्म-ए-इश्क़ में शरीक हैं

फ़िगार उन्नावी

चंद साँसें हैं मिरा रख़्त-ए-सफ़र ही कितना

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

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