खता Poetry (page 1)

ख़ुद-सताई से न हम बाज़ अना से आए

आज़ाद हुसैन आज़ाद

वो निशाना भी ख़ता जाता तो बेहतर होता

अब्दुल्लाह कमाल

किसी के बिछड़ने का डर ही नहीं

फ़ारूक़ इंजीनियर

एक है फिर भी है ख़ुदा सब का

लब पर ख़मोशियों को सजाए नज़र चुराए

ज़ेहरा निगाह

ख़ुश जो आए थे पशेमान गए

ज़ेहरा निगाह

न होगा हश्र महशर में बपा क्या

ज़ेबा

ख़्वाब-गाहों से अज़ान-ए-फ़ज्र टकराती रही

ज़हीर सिद्दीक़ी

अक्स ज़ख़्मों का जबीं पर नहीं आने देता

ज़फ़र सहबाई

जो बंदा-ए-ख़ुदा था ख़ुदा होने वाला है

ज़फ़र इक़बाल

बेवफ़ाई करके निकलूँ या वफ़ा कर जाऊँगा

ज़फ़र इक़बाल

सर में सौदा भी वही कूचा-ए-क़ातिल भी वही

ज़फ़र अनवर

ज़िंदगी दश्त-ए-बला हो जैसे

याक़ूब राही

मुझे दिल की ख़ता पर 'यास' शर्माना नहीं आता

यगाना चंगेज़ी

ज़माना ख़ुदा को ख़ुदा जानता है

यगाना चंगेज़ी

मुझे दिल की ख़ता पर 'यास' शरमाना नहीं आता

यगाना चंगेज़ी

क़ब्र पर बाद-ए-फ़ना आइएगा

वज़ीर अली सबा लखनवी

अदना सा बासी

वसीम बरेलवी

क्या दुख है समुंदर को बता भी नहीं सकता

वसीम बरेलवी

ख़ता क़ुबूल नहीं है तो ख़ुद ख़ता कर देख

वक़ार ख़ान

किवाड़ बंद भी है और नीम-वा भी है

वकील अख़्तर

रुख़्सत-ए-नुत्क़ ज़बानों को रिया क्या देगी

वहीद अख़्तर

ख़ाके

वहीद अहमद

हैं किस लिए उदास कोई पूछता नहीं

विश्वनाथ दर्द

लड़ जाते हैं सरों पे मचलती क़ज़ा से भी

उमर अंसारी

इस तरह रस्म मोहब्बत की अदा होती है

त्रिपुरारि

न तुम मिले थे तो दुनिया चराग़-पा भी न थी

तारिक़ क़मर

कोई शिकवा था शिकायत थी गिला था क्या था

तनवीर गौहर

इश्क़ क्या शय है दोस्त क्या कहिए

तनवीर गौहर

मैं ने बख़्श दी तिरी क्यूँ ख़ता तुझे इल्म है

तैमूर हसन

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