खता Poetry (page 11)

अब भी रौशन हैं

अली सरदार जाफ़री

लू के मौसम में बहारों की हवा माँगते हैं

अली सरदार जाफ़री

किसी पे बार-ए-दिगर भी निगाह कर न सके

अली अकबर अब्बास

अब जाम निगाहों के नशा क्यूँ नहीं देते

अलीम उस्मानी

ज़िंदगी तेरे अजब ठोर-ठिकाने निकले

अकमल इमाम

मताअ-ए-राएगाँ

अख़्तर-उल-ईमान

उस मह-जबीं से आज मुलाक़ात हो गई

अख़्तर शीरानी

लज़्ज़त-ए-दर्द मिली जुर्म-ए-मोहब्बत में उसे

अख़तर मुस्लिमी

इंसाफ़ के पर्दे में ये क्या ज़ुल्म है यारो

अख़तर मुस्लिमी

क़ुर्ब के न वफ़ा के होते हैं

अख़्तर मालिक

तिरी आश्नाई से तेरी रज़ा तक

अख़लाक़ अहमद आहन

वो हज़ार हम पे जफ़ा सही कोई शिकवा फिर भी रवा नहीं

अख़गर मुशताक़ रहीमाबादी

मिस सीमीं बदन

अकबर इलाहाबादी

न बहते अश्क तो तासीर में सिवा होते

अकबर इलाहाबादी

आज यूँ मुझ से मिला है कि ख़फ़ा हो जैसे

अकबर अली खान अर्शी जादह

नाकाम हैं असर से दुआएँ दुआ से हम

अहसन मारहरवी

दुनिया सभी बातिल की तलबगार लगे है

अहमद शाहिद ख़ाँ

अजब सुरूर मिला है मुझे दुआ कर के

अहमद नदीम क़ासमी

शब-ए-माह में जो पलंग पर मिरे साथ सोए तो क्या हुए

अहमद हुसैन माइल

क़ामत को तेरे सर्व सनोबर नहीं कहा

अहमद फ़राज़

लुटाते हैं वो बाग़-ए-इश्क़ जाए जिस का जी चाहे

आग़ा हज्जू शरफ़

हुए ऐसे ब-दिल तिरे शेफ़्ता हम दिल-ओ-जाँ को हमेशा निसार किया

आग़ा हज्जू शरफ़

न बाम-ओ-दश्त न दरिया न कोहसार मिले

अदा जाफ़री

कहते हैं कि अब हम से ख़ता-कार बहुत हैं

अदा जाफ़री

हिस नहीं तड़प नहीं बाब-ए-अता भी क्यूँ खुले

अदा जाफ़री

किस का है जुर्म किस की ख़ता सोचना पड़ा

अबरार आज़मी

बेवफ़ा कहिए बा-वफ़ा कहिए

अब्दुल मजीद ख़ाँ मजीद

शब की बेदारियाँ नहीं अच्छी

अब्दुल हमीद अदम

कितनी बे-साख़्ता ख़ता हूँ मैं

अब्दुल हमीद अदम

हर दुश्मन-ए-वफ़ा मुझे महबूब हो गया

अब्दुल हमीद अदम

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