देते न दिल जो तुम को तो क्यूँ बनती जान पर
कुछ आप की ख़ता न थी अपना क़ुसूर था
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रुके है आमद-ओ-शुद में नफ़स नहीं चलता
इसी ख़याल में दिन-रात मैं तड़पता हूँ
पैक-ए-ख़याल भी है अजब क्या जहाँ-नुमा
गुज़िश्ता साल जो देखा वो अब की साल नहीं
दौलत ने मुआ'विनत जो की तो क्या की
ये फ़र्क़ जीते ही जी तक गदा-ओ-शाह में है
हवा के घोड़े पे रहता है वो सवार मुदाम
उस माह-रू पे आँख किसी की न पड़ सकी
तुम्हारे इश्क़ में क्या क्या न इख़्तियार किया
गिरजा में गए तो पारसाई देखी