हवा के घोड़े पे रहता है वो सवार मुदाम
किसी का उस के बराबर फ़रस नहीं चलता
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दिल में अपने आरज़ू सब कुछ है और फिर कुछ नहीं
शौक़ ने की जो रहबरी दिल की
अदम से हस्ती में जब हम आए न कोई हमदर्द साथ लाए
जान पर अपनी हाए क्यूँ बनती
गिरजा में गए तो पारसाई देखी
जब जवानी गई छुड़ा कर हाथ
है तलाश-ए-दो-जहाँ लेकिन ख़बर अपनी किसे
पीरी में ख़ाक ज़िंदगानी का मज़ा
पैक-ए-ख़याल भी है अजब क्या जहाँ-नुमा
जब तक है शबाब-ए-साज़गार-ए-दौलत
दूर हम से हैं वो तो क्या डर है
रुके है आमद-ओ-शुद में नफ़स नहीं चलता