सपना Poetry (page 47)

काली रेत

रईस फ़रोग़

ऊपर बादल नीचे पर्बत बीच में ख़्वाब ग़ज़ालाँ का

रईस फ़रोग़

रातों को दिन के सपने देखूँ दिन को बिताऊँ सोने में

रईस फ़रोग़

कितनी ही बारिशें हों शिकायत ज़रा नहीं

रईस फ़रोग़

कितनी ही बारिशें हों शिकायत ज़रा नहीं

रईस फ़रोग़

हवस का रंग ज़ियादा नहीं तमन्ना में

रईस फ़रोग़

हाथ हमारे सब से ऊँचे हाथों ही से गिला भी है

रईस फ़रोग़

हमा-वक़्त जो मिरे साथ हैं ये उभरते डूबते साए से

रईस फ़रोग़

गीत के बाद भी गाए जाऊँ

रईस फ़रोग़

फ़ज़ा मलूल थी मैं ने फ़ज़ा से कुछ न कहा

रईस फ़रोग़

अपने ही शब ओ रोज़ में आबाद रहा कर

रईस फ़रोग़

तिरा ख़याल कि ख़्वाबों में जिन से है ख़ुशबू

रईस अमरोहवी

कल रात कई ख़्वाब-ए-परेशाँ नज़र आए

रईस अमरोहवी

दीदनी है बहार का मंज़र

रईस अमरोहवी

ऐ दिल शरीक-ए-ताइफ़ा-ए-वज्द-ओ-हाल हो

रईस अमरोहवी

तल्ख़ी-ए-ग़म का जो है मुकम्मल जवाब ला

रहमत इलाही बर्क़ आज़मी

बहुत रौशन हम अपना नय्यर-ए-तक़दीर देखेंगे

रहमत इलाही बर्क़ आज़मी

ये अमल मौजा-ए-अन्फ़ास का धोका ही न हो

रहमान हफ़ीज़

उड़ाते आए हैं आप अपने ख़्वाब-ज़ार की ख़ाक

रहमान हफ़ीज़

तश्बीब

राही मासूम रज़ा

तल्ख़-ओ-तुर्श

राही मासूम रज़ा

ख़्वाब

राही मासूम रज़ा

लोग यक-रंगी-ए-वहशत से भी उकताए हैं

राही मासूम रज़ा

कोई नश्शा न कोई ख़्वाब ख़रीद

राही फ़िदाई

तबर-ओ-तेशा-ओ-तासीर कहाँ से लाएँ

राहील फ़ारूक़

कहाँ न-जाने चला गया इंतिज़ार कर के

इरफ़ान सत्तार

हमें नहीं आते ये कर्तब नए ज़माने वाले

इरफ़ान सत्तार

इक ख़्वाब नींद का था सबब, जो नहीं रहा

इरफ़ान सत्तार

अब तिरे लम्स को याद करने का इक सिलसिला और दीवाना-पन रह गया

इरफ़ान सत्तार

अब आ भी जाओ, बहुत दिन हुए मिले हुए भी

इरफ़ान सत्तार

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