सूक्ष्म Poetry (page 6)

बदन पे पैरहन-ए-ख़ाक के सिवा क्या है

हिमायत अली शाएर

निगाह-ए-यार जिसे आश्ना-ए-राज़ करे

हसरत मोहानी

घटेगा तेरे कूचे में वक़ार आहिस्ता आहिस्ता

हसरत मोहानी

जो मेरे दश्त-ए-जुनूँ में था फ़र्क़-ए-रू-ए-बहार

हसन नईम

न मेरे ख़्वाब को पैकर न ख़द्द-ओ-ख़ाल दिया

हसन नईम

बयान-ए-शौक़ बना हर्फ़-ए-इज़्तिराब बना

हसन नईम

सोच का धारा

हसन आबिद

मोहब्बत जादा है मंज़िल नहीं है

हमीद नसीम

इक तो ख़ुद अपनी ग़मगीनी

हैरत शिमलवी

एक तो ख़ुद अपनी ग़मगीनी

हैरत शिमलवी

न सर छुपाने को घर था न आब-ओ-दाना था

हैदर अली जाफ़री

आग़ाज़-ए-मोहब्बत में बरसों यूँ ज़ब्त से हम ने काम लिया

हफ़ीज़ जौनपुरी

आग़ाज़-ए-मोहब्बत में बरसों यूँ ज़ब्त से हम ने काम लिया

हफ़ीज़ जौनपुरी

रक़्क़ासा

हफ़ीज़ जालंधरी

मन-ओ-तू का हिजाब उठने न दे ऐ जान-ए-यकताई

हफ़ीज़ होशियारपुरी

कभी ख़िरद कभी दीवानगी ने लूट लिया

हफ़ीज़ बनारसी

ये कैसी हवा-ए-ग़म-ओ-आज़ार चली है

हफ़ीज़ बनारसी

कितना सुकूत है रसन-ओ-दार की तरफ़

हबीब जालिब

ये कैफ़ कैफ़-ए-मोहब्बत है कोई क्या जाने

हबीब अशअर देहलवी

तस्लीम है सआदत-ए-होश-ओ-ख़िरद मगर

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

ख़िज़ाँ-नसीब की हसरत ब-रू-ए-कार न हो

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

नज़र नज़र में अदा-ए-जमाल रखते थे

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

ज़ुलेख़ा बे-ख़िरद आवारा लैला बद-मज़ा शीरीं

ग़ुलाम मौला क़लक़

कोई कैसा ही साबित हो तबीअ'त आ ही जाती है

ग़ुलाम मौला क़लक़

बे-गाना-अदाई है सितम जौर-ओ-सितम में

ग़ुलाम मौला क़लक़

अजब इंक़लाब का दौर है कि हर एक सम्त फ़िशार है

ग़ुबार भट्टी

हम ने जब चाहा कोई आग बुझाने आए

ग़यास अंजुम

नहीं है ज़ख़्म कोई बख़िये के दर-ख़ुर मिरे तन में

ग़ालिब

ग़म खाने में बूदा दिल-ए-नाकाम बहुत है

ग़ालिब

अब मैं हुदूद-ए-होश-ओ-ख़िरद से गुज़र गया

गणेश बिहारी तर्ज़

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