कभी ख़िरद कभी दीवानगी ने लूट लिया
तरह तरह से हमें ज़िंदगी ने लूट लिया
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लब-ए-फ़ुरात वही तिश्नगी का मंज़र है
तेज़ जब ख़ंजर-ए-बेदाद किया जाएगा
सभी के दीप सुंदर हैं हमारे क्या तुम्हारे क्या
दुश्मनों की जफ़ा का ख़ौफ़ नहीं
ख़फ़ा है गर ये ख़ुदाई तो फ़िक्र ही क्या है
किस मुँह से करें उन के तग़ाफ़ुल की शिकायत
जो नज़र से बयान होती है
एक सीता की रिफ़ाक़त है तो सब कुछ पास है
हमारे अहद का मंज़र अजीब मंज़र है
किसी का घर जले अपना ही घर लगे है मुझे
आसान नहीं मरहला-ए-तर्क-ए-वफ़ा भी