सूक्ष्म Poetry (page 9)

ये दौर-ए-ख़िरद है दौर-ए-जुनूँ इस दौर में जीना मुश्किल है

अर्श मलसियानी

मोहब्बत सोज़ भी है साज़ भी है

अर्श मलसियानी

शायरी मुझ को अजब हाल में ले जाती है

आरिफ़ इमाम

खींच कर तलवार जब तर्क-ए-सितमगर रह गया

अनवरी जहाँ बेगम हिजाब

जल्वे दिखाए यार ने अपनी हरीम-ए-नाज़ में

अनवर सहारनपुरी

रोज़ आपस में लड़ा करते हैं अर्बाब-ए-ख़िरद

अनवर साबरी

रोज़ आपस में लड़ा करते हैं अर्बाब-ए-ख़िरद

अनवर साबरी

तलख़ाबा-ए-ग़म ख़ंदा-जबीं हो के पिए जा

अनवर साबरी

जाए ख़िरद नहीं है कि फ़रज़ाना चाहिए

अंजुम रूमानी

कहो क्या मेहरबाँ ना-मेहरबाँ तक़दीर होती है

अंजुम ख़लीक़

जान-ए-अफ़्साना यही कुछ भी हो अफ़्साने का नाम

आनंद नारायण मुल्ला

शाम ढले जब बस्ती वाले लौट के घर को आते हैं

अमजद इस्लाम अमजद

कुछ सुलगते हुए ख़्वाबों की फ़रावानी है

आमिर नज़र

ख़ेमा-ए-जाँ को जो देखूँ तो शरर-बार लगे

आमिर नज़र

क़िस्सा-ए-ख़ाक तो कुछ ख़ाक से आगे तक था

अमीन अडीराई

ईंट दीवार से जब कोई खिसक जाती है

अल्ताफ़ परवाज़

गेसू-ए-ताबदार को और भी ताबदार कर

अल्लामा इक़बाल

फ़ितरत को ख़िरद के रू-ब-रू कर

अल्लामा इक़बाल

सर-गुज़िश्त-ए-आदम

अल्लामा इक़बाल

लेनिन

अल्लामा इक़बाल

जिब्रईल ओ इबलीस

अल्लामा इक़बाल

या रब ये जहान-ए-गुज़राँ ख़ूब है लेकिन

अल्लामा इक़बाल

वो हर्फ़-ए-राज़ कि मुझ को सिखा गया है जुनूँ

अल्लामा इक़बाल

शुऊर ओ होश ओ ख़िरद का मोआमला है अजीब

अल्लामा इक़बाल

कमाल-ए-तर्क नहीं आब-ओ-गिल से महजूरी

अल्लामा इक़बाल

कमाल-ए-जोश-ए-जुनूँ में रहा मैं गर्म-ए-तवाफ़

अल्लामा इक़बाल

गेसू-ए-ताबदार को और भी ताबदार कर

अल्लामा इक़बाल

गर्म-ए-फ़ुग़ाँ है जरस उठ कि गया क़ाफ़िला

अल्लामा इक़बाल

फ़ितरत को ख़िरद के रू-ब-रू कर

अल्लामा इक़बाल

फ़क़्र के हैं मोजज़ात ताज ओ सरीर ओ सिपाह

अल्लामा इक़बाल

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