खुशबू Poetry (page 23)

निरवान

बाक़र मेहदी

नए समय की कोयल

बक़ा बलूच

माँ

बक़ा बलूच

ये किस की याद का दिल पर रफ़ू था

बकुल देव

जो है चश्मा उसे सराब करो

बकुल देव

कभी आँखों पे कभी सर पे बिठाए रखना

बख़्श लाइलपूरी

अज़ाब होती हैं अक्सर शबाब की घड़ियाँ

बद्र वास्ती

ज़ेहन और दिल में जो रहती है चुभन खुल जाए

बद्र वास्ती

तुम्हारे दिल में जो ग़म बसा है तो मैं कहाँ हूँ

बद्र वास्ती

टपकते शो'लों की बरसात में नहाउँगा

बदनाम नज़र

बाग़-ए-दिल में कोई ग़ुंचा न खिला तेरे बा'द

बदनाम नज़र

आग ही काश लग गई होती

बदीउज़्ज़माँ ख़ावर

सिमट गई तो शबनम फूल सितारा थी

अज़रा परवीन

ख़्वाब-जंगल

अज़रा नक़वी

समुंदर की ख़ुश्बू

अज़रा अब्बास

आख़िरी रूसूमात के दौरान

अज़रा अब्बास

चाँद सा चेहरा कुछ इतना बेबाक हुआ

अज़्म शाकरी

वुसअत-ए-चश्म को अंदोह-ए-बसारत लिक्खा

अज़्म बहज़ाद

वुसअत-ए-चश्म को अंदोह-ए-बसारत लिख्खा

अज़्म बहज़ाद

मैं उम्र के रस्ते में चुप-चाप बिखर जाता

अज़्म बहज़ाद

कितने मौसम सरगर्दां थे मुझ से हाथ मिलाने में

अज़्म बहज़ाद

उस ने मिरे मरने के लिए आज दुआ की

अज़ीज़ वारसी

तसमा-ए-पा

अज़ीज़ तमन्नाई

उफ़ुक़ के उस पार कर रहा है कोई मिरा इंतिज़ार शायद

अज़ीज़ तमन्नाई

कावाक

अज़ीज़ क़ैसी

सुब्ह-सवेरे ख़ुशबू पनघट जाएगी

अज़ीज़ नबील

बातों में बहुत गहराई है, लहजे में बड़ी सच्चाई है

अज़ीज़ नबील

जैसे कोई रोता है गले प्यार से लग कर

अज़ीज़ एजाज़

तू आया तो द्वार भिड़े थे दीप बुझा था आँगन का

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

फिर इस के बाद मनाया न जश्न ख़ुश्बू का

अज़हर इक़बाल

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