फिर इस के बाद मनाया न जश्न ख़ुश्बू का
लहू में डूबी थी फ़स्ल-ए-बहार क्या करते
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Wasi Shah
Gulzar
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Anwar Masood
Rahat Indori
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(2068) Peoples Rate This
घुटन सी होने लगी उस के पास जाते हुए
हर एक शख़्स यहाँ महव-ए-ख़्वाब लगता है
तुम्हारे आने की उम्मीद बर नहीं आती
ये बार-ए-ग़म भी उठाया नहीं बहुत दिन से
दिल की गली में चाँद निकलता रहता है
तुम्हारी याद के दीपक भी अब जलाना क्या
ये कैफ़ियत है मेरी जान अब तुझे खो कर
कहीं अबीर की ख़ुश्बू कहीं गुलाल का रंग
हुई न ख़त्म तेरी रहगुज़ार क्या करते
एक मुद्दत से हैं सफ़र में हम