तुम्हारे आने की उम्मीद बर नहीं आती
मैं राख होने लगा हूँ दिए जलाते हुए
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तुम्हारी याद के दीपक भी अब जलाना क्या
घुटन सी होने लगी उस के पास जाते हुए
हर एक शख़्स यहाँ महव-ए-ख़्वाब लगता है
ये कैफ़ियत है मेरी जान अब तुझे खो कर
हुई न ख़त्म तेरी रहगुज़ार क्या करते
मुझ को वहशत हुई मिरे घर से
कहीं अबीर की ख़ुश्बू कहीं गुलाल का रंग
दिल की गली में चाँद निकलता रहता है
एक मुद्दत से हैं सफ़र में हम
हर एक सम्त यहाँ वहशतों का मस्कन है