खुशबू Poetry (page 24)

हुई न ख़त्म तेरी रहगुज़ार क्या करते

अज़हर इक़बाल

मैं जिसे ढूँडने निकला था उसे पा न सका

अज़हर इनायती

तमाम शख़्सियत उस की हसीं नज़र आई

अज़हर इनायती

अपने आँचल में छुपा कर मिरे आँसू ले जा

अज़हर इनायती

मता-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र रहा हूँ

अय्यूब साबिर

न कोई दिन न कोई रात इंतिज़ार की है

अय्यूब ख़ावर

न कोई दिन न कोई रात इंतिज़ार की है

अय्यूब ख़ावर

इस क़दर ग़म है कि इज़हार नहीं कर सकते

अय्यूब ख़ावर

इक तुम कि हो बे-ख़बर सदा के

अय्यूब ख़ावर

मोहब्बतें भी लिखी हुई हैं अदावतें भी लिखी हुई हैं

अतहर सलीमी

न शाम है न सवेरा अजब दयार में हूँ

अतहर नफ़ीस

लम्हों के अज़ाब सह रहा हूँ

अतहर नफ़ीस

क्या बात निराली है मुझ में किस फ़न में आख़िर यकता हूँ

अतहर नफ़ीस

क़रीब से न गुज़र इंतिज़ार बाक़ी रख

अतीक़ असर

दूर मुझ से रहते हैं सारे ग़म ज़माने के

अतीक़ अंज़र

वो ग़ज़ल की किताब है प्यारे

अतीक़ अंज़र

मिरे दिल में ख़ुश्बू बसी थी जो वो मकान अपना बदल गई

अतीक़ अंज़र

जिस्म के घरौंदे में आग शोर करती है

अतीक़ अंज़र

बा'द मुद्दत मिले कुछ कहा न सुना भर गए ज़ख़्म पुरवाइयाँ सो गईं

अतीक़ अंज़र

ज़ब्त की हद से हो के गुज़रना सो जाना

अतीक़ इलाहाबादी

दिल की दहलीज़ पे दिलबर आया

अतीब एजाज़

आज भी जिस की ख़ुश्बू से है मतवाली मतवाली रात

अताउर्रहमान जमील

नुमाइश में

असरार-उल-हक़ मजाज़

सुना है चाँदनी-रातों में अक्सर तुम

असरा रिज़वी

ज़िंदगी उलझी है बिखरे हुए गेसू की तरह

असरा रिज़वी

मैं हज्व इक अपने हर क़सीदे की रद में तहरीर कर रहा हूँ

असलम महमूद

क्यूँ मुझ से गुरेज़ाँ है मैं तेरा मुक़द्दर हूँ

असलम महमूद

सोच की उलझी हुई झाड़ी की जानिब जो गई

असलम कोलसरी

दिल-ए-पुर-ख़ूँ को यादों से उलझता छोड़ देते हैं

असलम कोलसरी

दयार-ए-हिज्र में ख़ुद को तो अक्सर भूल जाता हूँ

असलम कोलसरी

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