दूर मुझ से रहते हैं सारे ग़म ज़माने के
तेरी याद की ख़ुश्बू दिल में जब ठहरती है
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बिछड़ते वक़्त अना दरमियान थी वर्ना
न मिल सका तरी लहरों में भी क़रार मुझे
शाम के धुँदलकों में डूबता है यूँ सूरज
वो ग़ज़ल की किताब है प्यारे
ग़म की बंद मुट्ठी में रेत सा मिरा जीवन
मिरी ज़िंदगी किसी मोड़ पर कभी आँसुओं से वफ़ा न दे
अश्क इन आँखों से हम दिल में बहा कर देखें
मैं तुम से तर्क-ए-तअल्लुक की बात क्यूँ सोचूँ
फूल पर ओस है आरिज़ पे नमी हो जैसे
किसी ने भेजा है ख़त प्यार और वफ़ा लिख कर
जिस की ख़ातिर मैं ने दुनिया की तरफ़ देखा न था