बिछड़ते वक़्त अना दरमियान थी वर्ना
मनाना दोनों ने इक दूसरे को चाहा था
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मिरी ज़िंदगी किसी मोड़ पर कभी आँसुओं से वफ़ा न दे
कहानियाँ ख़मोश हैं पहेलियाँ उदास हैं
दूर मुझ से रहते हैं सारे ग़म ज़माने के
दिल के आँगन में तिरी याद का तारा चमका
शाम के धुँदलकों में डूबता है यूँ सूरज
सुलगती रेत की क़िस्मत में दरिया लिख दिया जाए
मैं तुम से तर्क-ए-तअल्लुक की बात क्यूँ सोचूँ
ग़म की बंद मुट्ठी में रेत सा मिरा जीवन
न मिल सका तरी लहरों में भी क़रार मुझे
फूल पर ओस है आरिज़ पे नमी हो जैसे
उदास बैठा दिए ज़ख़्म के जलाए हुए