शाम के धुँदलकों में डूबता है यूँ सूरज
जैसे आरज़ू कोई मेरे दिल में मरती है
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वो ग़ज़ल की किताब है प्यारे
मिरे दिल में ख़ुश्बू बसी थी जो वो मकान अपना बदल गई
गुज़िश्ता रात कोई चाँद घर में उतरा था
न मिल सका तरी लहरों में भी क़रार मुझे
कहानियाँ ख़मोश हैं पहेलियाँ उदास हैं
मिरी ज़िंदगी किसी मोड़ पर कभी आँसुओं से वफ़ा न दे
सुलगती रेत की क़िस्मत में दरिया लिख दिया जाए
बिछड़ते वक़्त अना दरमियान थी वर्ना
फूल पर ओस है आरिज़ पे नमी हो जैसे
कहीं बुझती है दिल की प्यास इक दो घूँट से 'अनज़र'
जिस्म के घरौंदे में आग शोर करती है
बा'द मुद्दत मिले कुछ कहा न सुना भर गए ज़ख़्म पुरवाइयाँ सो गईं