कहीं बुझती है दिल की प्यास इक दो घूँट से 'अनज़र'
मैं सूरज हूँ मिरे हिस्से में दरिया लिख दिया जाए
Wasi Shah
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किसी ने भेजा है ख़त प्यार और वफ़ा लिख कर
मैं तुम से तर्क-ए-तअल्लुक की बात क्यूँ सोचूँ
दूर मुझ से रहते हैं सारे ग़म ज़माने के
जिस्म के घरौंदे में आग शोर करती है
बा'द मुद्दत मिले कुछ कहा न सुना भर गए ज़ख़्म पुरवाइयाँ सो गईं
दिल के आँगन में तिरी याद का तारा चमका
मिरी ज़िंदगी किसी मोड़ पर कभी आँसुओं से वफ़ा न दे
शाम के धुँदलकों में डूबता है यूँ सूरज
वो ग़ज़ल की किताब है प्यारे
सुलगती रेत की क़िस्मत में दरिया लिख दिया जाए
गुज़िश्ता रात कोई चाँद घर में उतरा था