गाँव के परिंदे तुम को क्या पता बिदेसों में
रात हम अकेलों की किस तरह गुज़रती है
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बिछड़ते वक़्त अना दरमियान थी वर्ना
जिस की ख़ातिर मैं ने दुनिया की तरफ़ देखा न था
मिरी ज़िंदगी किसी मोड़ पर कभी आँसुओं से वफ़ा न दे
दिल के आँगन में तिरी याद का तारा चमका
कहानियाँ ख़मोश हैं पहेलियाँ उदास हैं
गुज़िश्ता रात कोई चाँद घर में उतरा था
वो ग़ज़ल की किताब है प्यारे
मैं तुम से तर्क-ए-तअल्लुक की बात क्यूँ सोचूँ
न मिल सका तरी लहरों में भी क़रार मुझे
जिस्म के घरौंदे में आग शोर करती है
किसी ने भेजा है ख़त प्यार और वफ़ा लिख कर