लहू Poetry (page 17)

सरहद-ए-जिस्म पे हैरान खड़ा था मैं भी

रशीद निसार

मैं चोब-ए-ख़ुश्क सही वक़्त का हूँ सहरा में

रशीद निसार

दरिया को अपने पाँव की कश्ती से पार कर

रशीद निसार

अपने ज़िंदा जिस्म की गुफ़्तार में खोया हुआ

रशीद निसार

जब से सुना दहन तिरे ऐ माह-रू नहीं

रशीद लखनवी

गर्म रफ़्तार है तेरी ये पता देते हैं

रशीद लखनवी

गए दिनों की मुसाफ़िरत का ब-यक-क़लम इश्तिहार लिखना

रशीद एजाज़

तन्हाइयों के दर्द से रिसता हुआ लहू

रशीद अफ़रोज़

'मीर'-जी से अगर इरादत है

रसा चुग़ताई

देता है मुझ को चर्ख़-ए-कुहन बार बार दाग़

रंजूर अज़ीमाबादी

निगाह तूर पे है और जमाल सीने में

रम्ज़ अज़ीमाबादी

हम तो दिन-रात इसी सोच में मर जाएँगे

राम नाथ असीर

फिर भीग चलीं आँखें चलने लगी पुर्वाई

राम कृष्ण मुज़्तर

वो जो होती थी फ़ज़ा-ए-दास्तानी ले गया

रख़शां हाशमी

वही इक मौसम-ए-सफ़्फ़ाक था अंदर भी बाहर भी

राजेन्द्र मनचंदा बानी

तुझे ज़रा दुख और सिसकने वाला मैं

राजेन्द्र मनचंदा बानी

मिरे बदन में पिघलता हुआ सा कुछ तो है

राजेन्द्र मनचंदा बानी

ज़िंदगी तू ने लहू ले के दिया कुछ भी नहीं

राजेश रेड्डी

और कुछ तेज़ चलीं अब के हवाएँ शायद

रईस सिद्दीक़ी

ये सर्द रात कोई किस तरह गुज़ारेगा

रईस फ़रोग़

जंगल से आगे निकल गया

रईस फ़रोग़

हवस का रंग ज़ियादा नहीं तमन्ना में

रईस फ़रोग़

सियाह है दिल-ए-गीती सियाह-तर हो जाए

रईस अमरोहवी

सियाह है दिल-ए-गीती सियाह-तर हो जाए

रईस अमरोहवी

दिल वाले हैं हम रस्म-ए-वफ़ा हम से मिली है

राही शहाबी

दिल वाले हैं हम रस्म-ए-वफ़ा हम से मिली है

राही शहाबी

लहू आँखों में रौशन है ये मंज़र देखना अब के

राही कुरैशी

तल्ख़-ओ-तुर्श

राही मासूम रज़ा

कहाँ न-जाने चला गया इंतिज़ार कर के

इरफ़ान सत्तार

एक तारीक ख़ला उस में चमकता हवा मैं

इरफ़ान सत्तार

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