लहू Poetry (page 15)

सदियों की शब-ए-ग़म को सहर हम ने बनाया

साग़र निज़ामी

कुछ तो वफ़ा का रंग हो दस्त-ए-जफ़ा के साथ

साग़र मेहदी

इक अजनबी ख़याल में ख़ुद से जुदा रहा

साग़र मेहदी

पस-ए-रौशनी

साग़र ख़य्यामी

रह-ए-हयात में बस वो क़दम बढ़ा के चले

साग़र ख़य्यामी

रह-ए-हयात में बस वो क़दम बढ़ा के चले

साग़र ख़य्यामी

गुलशन को बहारों ने इस तरह नवाज़ा है

साग़र आज़मी

ख़ुद को जब ख़ुद से किसी रोज़ रिहाई दूँगी

सादिया सफ़दर सादी

उदास उदास सर-ए-साग़र-ओ-सुबू भी मैं

सादिक़ नसीम

गुज़रे हैं तेरे साथ जो दिन-रात अभी तक

सादिक़ा फ़ातिमी

फिर से लहू लहू दर-ओ-दीवार देख ले

सादिक़

पलंग पर जो किताब ओ सिनान रख देगा

सादिक़

मुँह आँसुओं से अपना अबस धो रहे हो क्यूँ

सादिक़

बिस्तर बिछा के रात वो कमरे में सो गया

सादिक़

लफ़्ज़ों को सजा कर जो कहानी लिखना

सदफ़ जाफ़री

लाख तक़दीर पे रोए कोई रोने वाला

सदा अम्बालवी

आँधी का कर ख़याल न तेवर हवा के देख

साबिर ज़ाहिद

वाक़िफ़ ख़ुद अपनी चश्म-ए-गुरेज़ाँ से कौन है

साबिर ज़फ़र

पड़ा न फ़र्क़ कोई पैरहन बदल के भी

साबिर ज़फ़र

मुस्तक़र की ख़्वाहिश में मुंतशिर से रहते हैं

साबिर

उलझनों में कैसे इत्मीनान-ए-दिल पैदा करें

सबा अकबराबादी

मंज़िल पे पहुँचने का मुझे शौक़ हुआ तेज़

सबा अकबराबादी

बस लहू की बूँद थी एहसास में

रियाज़ लतीफ़

मिरे सिमटे लहू का इस्तिआरा ले गया कोई

रियाज़ लतीफ़

जाल रगों का गूँज लहू की साँस के तेवर भूल गए

रियाज़ लतीफ़

उफ़ रे उभार उफ़ रे ज़माना उठान का

रियाज़ ख़ैराबादी

सितम-ए-ना-रवा को रोते हैं

रियाज़ ख़ैराबादी

न आया हमें इश्क़ करना न आया

रियाज़ ख़ैराबादी

मुँह ज़ेर-ए-ताक खोला वाइज़ बहुत ही चूका

रियाज़ ख़ैराबादी

मुझ को न दिल पसंद न दिल की ये ख़ू पसंद

रियाज़ ख़ैराबादी

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