पल Poetry (page 18)

ख़दशे थे शाम-ए-हिज्र के सुब्ह-ए-ख़ुशी के साथ

औलाद अली रिज़वी

ख़्वाबों की किर्चियाँ मिरी मुट्ठी में भर न जाए

अतीक़ुल्लाह

ख़्वाबों की किर्चियाँ मिरी मुट्ठी में भर न जाए

अतीक़ुल्लाह

कौन गुज़रा था मेहराब-ए-जाँ से अभी ख़ामुशी शोर भरता हुआ

अतीक़ुल्लाह

चराग़ हाथों के बुझ रहे हैं सितारा हर रह-गुज़र में रख दे

अतीक़ुल्लाह

आसमाँ का सितारा न महताब है

अतीक़ुल्लाह

आने वाला तो हर इक लम्हा गुज़र जाता है

अतीक़ुल्लाह

क्या बात निराली है मुझ में किस फ़न में आख़िर यकता हूँ

अतहर नफ़ीस

करता मैं अब किसी से कोई इल्तिमास क्या

अतहर नादिर

जिस को चाहा था कब मिला मुझ को

अतीक़ुर्रहमान सफ़ी

दिल पे यादों का बोझ तारी है

अतीब एजाज़

आज भी जिस की ख़ुश्बू से है मतवाली मतवाली रात

अताउर्रहमान जमील

यक लम्हा सही उम्र का अरमान ही रह जाए

अता शाद

आने वाली कल की दे कर ख़बर गया ये दिन भी

असरार ज़ैदी

परदेसी का ख़त

असरा रिज़वी

ख़्वाब इक जज़ीरा है

असरा रिज़वी

ख़िज़ाँ का मौसम

असरा रिज़वी

मैं सच तो कह दूँ पर उस को कहीं बुरा न लगे

असरा रिज़वी

बुझ गए मंज़र उफ़ुक़ पर हर निशाँ मद्धम हुआ

असलम महमूद

किसी की याद का साया था या कि झोंका था

असलम हबीब

दिल की धड़कन अब रग-ए-जाँ के बहुत नज़दीक है

असलम इमादी

कोई दीवार सलामत है न अब छत मेरी

असलम आज़ाद

अजीब शख़्स है मुझ को तो वो दिवाना लगे

असलम आज़ाद

मिस्र फ़िरऔन की तहवील में आया हुआ है

आसिम वास्ती

गुज़र चुका है जो लम्हा वो इर्तिक़ा में है

आसिम वास्ती

अपने अशआ'र भूल जाता हूँ

अशोक लाल

मैं सोचता तो हूँ लेकिन ये बात किस से कहूँ

अशफ़ाक़ अंजुम

हर लम्हा चाँद चाँद निखरना पड़ा मुझे

अाशा प्रभात

हम से दीवानों को असरी आगही डसती रही

असद रज़ा

नौ मंज़िला बिल्डिंग

असद मोहम्मद ख़ाँ

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