पल Poetry (page 5)

एक लम्हे में कटा है मुद्दतों का फ़ासला

शहज़ाद अहमद

बस एक लम्हे में क्या कुछ गुज़र गई दिल पर

शहज़ाद अहमद

बे-शुमार आँखें

शहज़ाद अहमद

प्यार के रंग-महल बरसों में तय्यार हुए

शहज़ाद अहमद

मैं कि ख़ुश होता था दरिया की रवानी देख कर

शहज़ाद अहमद

खिले जो फूल तो मुँह छुप गया सितारों का

शहज़ाद अहमद

कहीं भी साया नहीं किस तरफ़ चले कोई

शहज़ाद अहमद

जो दिल में खटकती है कभी कह भी सकोगे

शहज़ाद अहमद

दिल-ए-फ़सुर्दा उसे क्यूँ गले लगा न लिया

शहज़ाद अहमद

दिल से ये कह रहा हूँ ज़रा और देख ले

शहज़ाद अहमद

अब न वो शोर न वो शोर मचाने वाले

शहज़ाद अहमद

आती है दम-ब-दम ये सदा जागते रहो

शहज़ाद अहमद

ज़िंदा रहने का ये एहसास

शहरयार

ख़लीलुर्रहमान आज़मी की याद में

शहरयार

आरज़ू

शहरयार

तेरे वा'दे को कभी झूट नहीं समझूँगा

शहरयार

तेरे सिवा भी कोई मुझे याद आने वाला था

शहरयार

नशात-ए-ग़म भी मिला रंज-ए-शाद-मानी भी

शहरयार

हज़ार बार मिटी और पाएमाल हुई है

शहरयार

आँख की ये एक हसरत थी कि बस पूरी हुई

शहरयार

मैं नहीं रोता हूँ अब ये आँख रोती है मुझे

शहराम सर्मदी

सारे पत्थर और आईने एक से लगते हैं

शाहिदा हसन

आँसुओं में ज़रा सी हँसी घोल कर

शाहिद मीर

एक लम्हा

शाहिद माहुली

हर मरहले से यूँ तो गुज़र जाएगी ये शाम

शाहिद माहुली

मता-ए-जाँ हैं मिरी उम्र भर का हासिल हैं

शहबाज़ ख़्वाजा

भटक रहे हैं ग़म-ए-आगही के मारे हुए

शहबाज़ ख़्वाजा

दुश्मनी लर्ज़ां है यारो दोस्ती के सामने

शफ़ीउल्लाह राज़

सारी ताबीरें हैं उस की सारे ख़्वाब उस के लिए

शफ़ीक़ सलीमी

भरी महफ़िल में तन्हाई का आलम ढूँड लेता है

शफ़ीक़ ख़लिश

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