लहजे Poetry (page 5)

जिस्म में गूँजता है रूह पे लिक्खा दुख है

फ़क़ीह हैदर

कितना कमज़ोर है ईमान पता लगता है

अहया भोजपुरी

दिल जो तेशा-ज़नी पे माइल है

बिल्क़ीस ख़ान

अजल की फूँक मिरे कान में सुनाई दी

बिलाल अहमद

हम चटानों की तरह साहिल पे ढाले जाएँगे

बेकल उत्साही

फ़लक से चाँद सितारों से जाम लेना है

बशीर बद्र

तिश्नगी-ए-लब पे हम अक्स-ए-आब लिक्खेंगे

बख़्श लाइलपूरी

दीदा-ए-बे-रंग में ख़ूँ-रंग मंज़र रख दिए

बख़्श लाइलपूरी

आसमाँ पर काले बादल छा गए

बद्र-ए-आलम ख़लिश

जो बात शर्त-ए-विसाल ठहरी वही है अब वज्ह-ए-बद-गुमानी

अज़्म बहज़ाद

ये किस वहशत-ज़दा लम्हे में दाख़िल हो गए हैं

अज़ीज़ नबील

मिरा सवाल है ऐ क़ातिलान-ए-शब तुम से

अज़ीज़ नबील

बातों में बहुत गहराई है, लहजे में बड़ी सच्चाई है

अज़ीज़ नबील

मैं उस की बात के लहजे का ए'तिबार करूँ

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

इस हादसे को देख के आँखों में दर्द है

अज़हर इनायती

घर तो हमारा शो'लों के नर्ग़े में आ गया

अज़हर इनायती

जफ़ाओं की नुमाइश है किसी से कुछ नहीं बोलें

अज़हर हाश्मी

हमेशा वाहिद-ए-यकता बयाँ से गुज़रा है

अज़हर हाश्मी

दरीचों में चराग़ों की कमी महसूस होती है

अज़हर अदीब

नीम-शब आतिश-ए-फ़रियाद-ए-असीराँ रौशन

अज़ीम मुर्तज़ा

उस निगाह-ए-नाज़ ने यूँ रात-भर तज्सीम की

औरंगज़ेब

पल-दो-पल है फिर ये सोना मिट्टी का

अतहर नासिक

फिर कोई ताज़ा-सितम वो सितम-ईजाद करे

असरा रिज़वी

दिल की मौजों की तड़प मेरी सदा में आए

अासिफ़ साक़िब

जब ज़रा रात हुई और मह ओ अंजुम आए

असद भोपाली

हवा दरख़्तों से कहती है दुख के लहजे में

असअ'द बदायुनी

बिछड़ के तुझ से किसी दूसरे पे मरना है

असअ'द बदायुनी

न हर्फ़-ए-शौक़ न तर्ज़-ए-बयाँ से आती है

अरमान नज्मी

जाने किस आलम-ए-एहसास में खोए हुए हैं

अरमान नज्मी

अपने दरवाज़े पे ख़ुद ही दस्तकें देता है वो

आरिफ़ शफ़ीक़

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