लहजे Poetry (page 2)

तेज़ लहजे की अनी पर न उठा लें ये कहीं

तारिक़ जामी

सरसब्ज़ थे हुरूफ़ प लहजे में हब्स था

तारिक़ जामी

माँगने से तो हुकूमत नहीं मिलने वाली

तनवीर गौहर

ला-यख़ुल

तहसीन फ़िराक़ी

तासीर नहीं रहती अल्फ़ाज़ की बंदिश में

ताहिर अज़ीम

मैं उस की मोहब्बत से इक दिन भी मुकर जाता

ताहिर अज़ीम

मुस्तक़िल दर्द का सैलाब कहाँ अच्छा है

सूरज नारायण मेहर

महीने के अख़ीर दिनों में

सिदरा सहर इमरान

उस की बातें क्या करते हो वो लफ़्ज़ों का बानी था

शहपर रसूल

गुफ़्तुगू कर के परेशाँ हूँ कि लहजे में तिरे

शारिक़ कैफ़ी

अजब लहजे में करते थे दर ओ दीवार बातें

शारिक़ कैफ़ी

ख़मोशी बस ख़मोशी थी इजाज़त अब हुई है

शारिक़ कैफ़ी

देख न पाया जिस पैकर को वादों की अँगनाई में

शारिक़ जमाल

लोग क्यूँ ढूँड रहे हैं मुझे पत्थर ले कर

शमीम तारिक़

हासिल-ए-उम्र है जो एक कसक बाक़ी है

शकील जाज़िब

अल्फ़ाज़ नर्म हो गए लहजे बदल गए

शकील जमाली

छोड़ कर वो हम को तन्हा किस जहाँ में जा बसा

शहज़ाद हुसैन साइल

वो जा चुका है तो क्यूँ बे-क़रार इतने हो

शहज़ाद अहमद

कौन कहता है कि दरिया में रवानी कम है

शहज़ाद अहमद

वक़्फ़ा

शाहिद माहुली

ख़ुशियाँ मत दे मुझ को दर्द-ओ-कैफ़ की दौलत दे साईं

शाहिद कमाल

मुल्ज़िम ठहरी मैं अपनी सच्चाई से

सगुफ़ता यासमीन

नज़्म

शबनम अशाई

नुमू-पज़ीर है इक दश्त-ए-बे-नुमू मुझ में

सऊद उस्मानी

मैं दो जन्मा

सत्यपाल आनंद

हवा चलती है दम ठहरा हुआ है

सरफ़राज़ ज़ाहिद

वहम जैसी शुकूक जैसी चीज़

सरदार सलीम

ख़मोशी में छुपे लफ़्ज़ों के हुलिए याद आएँगे

सरदार सलीम

आग हो दिल में तो आँखों में धनक पैदा हो

साक़ी फ़ारुक़ी

सुर्ख़ गुलाब और बदर-ए-मुनीर

साक़ी फ़ारुक़ी

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