लहजे Poetry (page 1)

तिरी शबीह को लिक्खा है रंग-ओ-बू मैं ने

एहतिमाम सादिक़

देने वाले तुझे देना है तो इतना दे दे

संजय मिश्रा शौक़

ज़मीन सिमट कर मेरे तलवे से आ लगी

जवाज़ जाफ़री

तेवर भी देख लीजिए पहले घटाओं के

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

रद्द-ए-अमल

ज़ुबैर रिज़वी

हम बिछड़ के तुम से बादल की तरह रोते रहे

ज़ुबैर रिज़वी

हम बिछड़ के तुम से बादल की तरह रोते रहे

ज़ुबैर रिज़वी

एक सच्ची अम्माँ की कहानी

ज़ेहरा निगाह

इस बज़्म-ए-तसव्वुर में बस यार की बातें हैं

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

इश्क़ में तेरे जंगल भी घर लगते हैं

ज़किया ग़ज़ल

सानेहा रोज़ नया हो तो ग़ज़ल क्या कहिए

ज़फ़र रबाब

आइना देखें न हम अक्स ही अपना देखें

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

मैं ही दस्तक देने वाला मैं ही दस्तक सुनने वाला

ज़फर इमाम

उभरते डूबते तारों के भेद खोलेगा

ज़फ़र गौरी

किसी के नर्म लहजे का क़रीना

यासमीन हमीद

उफ़ुक़ तक मेरा सहरा खिल रहा है

यासमीन हमीद

ज़रा सा क़तरा कहीं आज अगर उभरता है

वसीम बरेलवी

ज़रा सा क़तरा कहीं आज अगर उभरता है

वसीम बरेलवी

चलो हम ही पहल कर दें कि हम से बद-गुमाँ क्यूँ हो

वसीम बरेलवी

चाहतों की जो दिल को आदत है

वजद चुगताई

आबाद वीरानियाँ

वहीद अहमद

बीते वक़्त का चेहरा ढूँढता रहता है

विजय शर्मा अर्श

हो तिरा इश्क़ मिरी ज़ात का मेहवर जैसे

उरूज ज़ेहरा ज़ैदी

फ़क़ीरों का चलन यूँ जिस्म के अंदर महकता है

ताैफ़ीक़ साग़र

राज़ का बज़्म में चर्चा कभी होने न दिया

तसनीम आबिदी

इस लहजे से बात नहीं बन पाएगी

तारिक़ क़मर

सारे ज़ख़्मों को ज़बाँ मिल गई ग़म बोलते हैं

तारिक़ क़मर

देखें कितने चाहने वाले निकलेंगे

तारिक़ क़मर

अभी तो मंसब-ए-हस्ती से मैं हटा ही नहीं

तारिक़ नईम

मिरी निगाह किसी ज़ाविए पे ठहरे भी

तारिक़ नईम

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