लोग Poetry (page 26)

ख़िज़ाँ की बात न ज़िक्र-ए-बहार करते हैं

रशक खलीली

ज़िंदगी थी ये तमाशा तो नहीं था पहले

राशिद तराज़

रौशनी बन के अँधेरे पे असर हम ने किया

राशिद तराज़

अपने बीमार सितारे का मुदावा होती

राशिद तराज़

ये मोहब्बत का वार है साहब

राशिद क़य्यूम अनसर

वो जो ख़ुद अपने बदन को साएबाँ करता नहीं

राशिद मुफ़्ती

लोग कि जिन को था बहुत ज़ोम-ए-वजूद शहर में

राशिद मुफ़्ती

कुछ यूँ भी मुझे रास हैं तन्हाइयाँ अपनी

राशिद मुफ़्ती

किस शय का सुराग़ दे रहा हूँ

राशिद मुफ़्ती

जो क़र्ज़ मुझ पे है वो बोझ उतारता जाऊँ

राशिद मुफ़्ती

मैं दश्त-ए-शेर में यूँ राएगाँ तो होता रहा

राशिद जमाल फ़ारूक़ी

मुजरिम है तुम्हारा तो सज़ा क्यूँ नहीं देते

राशिद फ़ज़ली

वो और लोग थे जो रास्ते बदलते रहे

राशिद अनवर राशिद

आँख की झील में कोहराम से आए हुए हैं

राशिद अमीन

तजज़िया

राशिद आज़र

झूट सच

राशिद आज़र

मरते नहीं अब इश्क़ में यूँ तो आतिश-ए-फ़ुर्क़त अब भी वही है

राशिद आज़र

दर्द अपना था तो इस दर्द को ख़ुद सहना था

राशिद आज़र

रुके हुए हैं जो दरिया उन्हें रवानी दे

रशीदुज़्ज़फ़र

तर्क-ए-सितम पे वो जो क़सम खा के रह गए

रशीद रामपुरी

मिरे घर के लोग जो घर मुझी को सुपुर्द कर के चले गए

रशीद रामपुरी

नाम हमारा दुनिया वाले लिखेंगे जी-दारों में

रशीद क़ैसरानी

मुँह किस तरह से मोड़ लूँ ऐसे पयाम से

रशीद क़ैसरानी

मैं ने कहीं थीं आप से बातें भली भली

रशीद क़ैसरानी

कुछ साए से हर लहज़ा किसी सम्त रवाँ हैं

रशीद क़ैसरानी

कुछ साए से हर लहज़ा किसी सम्त रवाँ हैं

रशीद क़ैसरानी

मैं चोब-ए-ख़ुश्क सही वक़्त का हूँ सहरा में

रशीद निसार

उक़्दे उल्फ़त के सब ऐ रश्क-ए-क़मर खोल दिए

रशीद लखनवी

ठहर जावेद के अरमाँ दिल-ए-मुज़्तर निकलते हैं

रशीद लखनवी

हिज्र है अब था यहीं में ज़ार हम पहलू-ए-दोस्त

रशीद लखनवी

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