लोग Poetry (page 28)

लिख लिख के आँसुओं से दीवान कर लिया है

राजेश रेड्डी

कुछ परिंदों को तो बस दो चार दाने चाहिएँ

राजेश रेड्डी

जिस को भी देखो तिरे दर का पता पूछता है

राजेश रेड्डी

महताब नहीं निकला सितारे नहीं निकले

राजेन्द्र नाथ रहबर

मैं संगलाख़ ज़मीनों के राज़ कहता हूँ

राज नारायण राज़

क्या बात है कि बात ही दिल की अदा न हो

राज नारायण राज़

बूँदें पड़ी थीं छत पे कि सब लोग उठ गए

राज नारायण राज़

अशआर रंग रूप से महरूम क्या हुए

राज नारायण राज़

मिलने को यूँ तो मिलते थे कुछ लोग रोज़ ही

राज खेती

और कुछ तेज़ चलीं अब के हवाएँ शायद

रईस सिद्दीक़ी

कह रहे थे लोग सहरा जल गया

रईस फ़रोग़

अपने ही शब ओ रोज़ में आबाद रहा कर

रईस फ़रोग़

आँखें जिन को देख न पाएँ सपनों में बिखरा देना

रईस फ़रोग़

सियाह है दिल-ए-गीती सियाह-तर हो जाए

रईस अमरोहवी

'रईस' हम जो सू-ए-कूचा-ए-हबीब चले

रईस अमरोहवी

ग़ुरूब-ए-मेहर का मातम है गुलिस्तानों में

रईस अमरोहवी

अपने को तलाश कर रहा हूँ

रईस अमरोहवी

हाँ उन्हीं लोगों से दुनिया में शिकायत है हमें

राही मासूम रज़ा

तश्बीब

राही मासूम रज़ा

मौज-ए-हवा की ज़ंजीरें पहनेंगे धूम मचाएँगे

राही मासूम रज़ा

लोग यक-रंगी-ए-वहशत से भी उकताए हैं

राही मासूम रज़ा

हम क्या जानें क़िस्सा क्या है हम ठहरे दीवाने लोग

राही मासूम रज़ा

हमें नहीं आते ये कर्तब नए ज़माने वाले

इरफ़ान सत्तार

एक तारीक ख़ला उस में चमकता हवा मैं

इरफ़ान सत्तार

वो कैसे लोग होते हैं जिन्हें हम दोस्त कहते हैं

इरफ़ान अहमद मीर

इसी सबब से तो हम लोग पेश-ओ-पस में हैं

इक़बाल उमर

हर बात जो न होना थी ऐसी हुई कि बस

इक़बाल उमर

पढ़ते पढ़ते थक गए सब लोग तहरीरें मिरी

इक़बाल साजिद

उस आइने में देखना हैरत भी आएगी

इक़बाल साजिद

रुख़-ए-रौशन का रौशन एक पहलू भी नहीं निकला

इक़बाल साजिद

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