लोग Poetry (page 30)

नहीं मालूम ये क्या कर चुके हैं

इनाम नदीम

वुफ़ूर-ए-हुस्न की लज़्ज़त से टूट जाते हैं

इनाम कबीर

कौन है मेरा ख़रीदार नहीं देखता मैं

इनआम आज़मी

कभी तो चश्म-ए-फ़लक में हया दिखाई दे

इनआम आज़मी

जो चला आता है ख़्वाबों की तरफ़-दारी को

इनआम आज़मी

ये क़िस्सा-ए-मुख़्तसर नहीं है

इम्तियाज़-उल-हक़ इम्तियाज़

तिरी फ़ुज़ूल बंदगी बना न दे ख़ुदा मुझे

इम्तियाज़ अहमद

दीवानगी में अपना पता पूछता हूँ मैं

इमरान हुसैन आज़ाद

मैं सच कहूँ पस-ए-दीवार झूट बोलते हैं

इमरान आमी

कुछ एहतिमाम न था शाम-ए-ग़म मनाने को

इमरान आमी

कोई मजनूँ कोई फ़रहाद बना फिरता है

इमरान आमी

वो रश्क-ए-मेहर-ओ-क़मर घात पर नहीं आता

इमदाद अली बहर

न कह हक़ में बुज़ुर्गों की कड़ी बात

इमदाद अली बहर

हम नाक़िसों के दौर में कामिल हुए तो क्या

इमदाद अली बहर

तुम्हारे जाते ही हर चश्म-ए-तर को देखते हैं

इमाम अाज़म

यार परिंदे!

इलियास बाबर आवान

कफ़ील-ए-साअ'त-ए-सय्यार रक्खा होता है

इलियास बाबर आवान

घर को जाने का रास्ता नहीं था

इलियास बाबर आवान

क्या जाने किस की धुन में रहा दिल-फ़िगार चाँद

इकराम जनजुआ

ख़ुद को हुजूम-ए-दहर में खोना पड़ा मुझे

इफ़्तिख़ार नसीम

ख़ुद को हुजूम-ए-दहर में खोना पड़ा मुझे

इफ़्तिख़ार नसीम

किसी सबब से अगर बोलता नहीं हूँ मैं

इफ़्तिख़ार मुग़ल

अंदलीबों से कभी गुल से कभी लेता हूँ

इफ़्तिख़ार हुसैन रिज़वी सईद

मलबे से जो मिली हैं वो लाशें दिखाइए

इफ़्तिख़ार फलक काज़मी

सब लोग अपने अपने क़बीलों के साथ थे

इफ़्तिख़ार आरिफ़

रंग से ख़ुशबुओं का नाता टूटता जाता है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ख़ुद को बिखरते देखते हैं कुछ कर नहीं पाते हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

हमीं में रहते हैं वो लोग भी कि जिन के सबब

इफ़्तिख़ार आरिफ़

पस च-बायद-कर्द

इफ़्तिख़ार आरिफ़

गुमनाम सिपाही की क़ब्र पर

इफ़्तिख़ार आरिफ़

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