लोग Poetry (page 31)

एलान नामा

इफ़्तिख़ार आरिफ़

एक उदास शाम के नाम

इफ़्तिख़ार आरिफ़

बारहवाँ खिलाड़ी

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ये नक़्श हम जो सर-ए-लौह-ए-जाँ बनाते हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ये अब खुला कि कोई भी मंज़र मिरा न था

इफ़्तिख़ार आरिफ़

मंज़र से हैं न दीदा-ए-बीना के दम से हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ख़्वाब-ए-देरीना से रुख़्सत का सबब पूछते हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

कहीं से कोई हर्फ़-ए-मो'तबर शायद न आए

इफ़्तिख़ार आरिफ़

हिज्र की धूप में छाँव जैसी बातें करते हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

फ़ज़ा में वहशत-ए-संग-ओ-सिनाँ के होते हुए

इफ़्तिख़ार आरिफ़

तसव्वुर

इफ़्तिख़ार आज़मी

बे-सम्त रास्तों पे सदा ले गई मुझे

इफ़्फ़त ज़र्रीं

नज़र जो आया उस पे ए'तिबार कर लिया गया

इफ़्फ़त अब्बास

वही न हो कि ये सब लोग साँस लेने लगें

इदरीस बाबर

मर गया ख़ास तौर पर मैं भी

इदरीस बाबर

यहाँ से चारों तरफ़ रास्ते निकलते हैं

इदरीस बाबर

तिरी गली से गुज़रने को सर झुकाए हुए

इदरीस बाबर

गुल-ए-सुख़न से अँधेरों में ताब-कारी कर

इदरीस बाबर

एक दिन ख़्वाब-नगर जाना है

इदरीस बाबर

दिल के घुटने को इशारा समझो

इदरीस बाबर

तिरी ज़मीं से उठेंगे तो आसमाँ होंगे

इब्राहीम अश्क

बिखरे हुए थे लोग ख़ुद अपने वजूद में

इब्राहीम अश्क

तिरी ज़मीं से उठेंगे तो आसमाँ होंगे

इब्राहीम अश्क

मिशअल-ब-कफ़ कभी तो कभी दिल-ब-दस्त था

इब्राहीम अश्क

जब शहर के लोग न रस्ता दें क्यूँ बन में न जा बिसराम करे

इब्न-ए-इंशा

अपनी ज़बाँ से कुछ न कहेंगे चुप ही रहेंगे आशिक़ लोग

इब्न-ए-इंशा

सब माया है

इब्न-ए-इंशा

झुलसी सी इक बस्ती में

इब्न-ए-इंशा

दिल-आशोब

इब्न-ए-इंशा

चाँद के तमन्नाई

इब्न-ए-इंशा

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