लोग Poetry (page 32)

ऐ मतवालो! नाक़ों वालो!!

इब्न-ए-इंशा

रात के ख़्वाब सुनाएँ किस को रात के ख़्वाब सुहाने थे

इब्न-ए-इंशा

पीत करना तो हम से निभाना सजन हम ने पहले ही दिन था कहा ना सजन

इब्न-ए-इंशा

जाने तू क्या ढूँढ रहा है बस्ती में वीराने में

इब्न-ए-इंशा

'इंशा'-जी उठो अब कूच करो इस शहर में जी को लगाना क्या

इब्न-ए-इंशा

'इंशा'-जी है नाम उन्ही का चाहो तो तुम से मिलवाएँ

इब्न-ए-इंशा

हम उन से अगर मिल बैठे हैं क्या दोश हमारा होता है

इब्न-ए-इंशा

हम जंगल के जोगी हम को एक जगह आराम कहाँ

इब्न-ए-इंशा

हमें तुम पे गुमान-ए-वहशत था हम लोगों को रुस्वा किया तुम ने

इब्न-ए-इंशा

दिल सी चीज़ के गाहक होंगे दो या एक हज़ार के बीच

इब्न-ए-इंशा

और तो कोई बस न चलेगा हिज्र के दर्द के मारों का

इब्न-ए-इंशा

अर्श के तारे तोड़ के लाएँ काविश लोग हज़ार करें

इब्न-ए-इंशा

खड्डियों पर बने लोग

हुसैन आबिद

दिल-ए-आज़ुर्दा को बहलाए हुए हैं हम लोग

हुरमतुल इकराम

अपने चमन पे अब्र ये कैसा बरस गया

हुरमतुल इकराम

लोग तो इक मंज़र हैं तख़्त-नशीनों की ख़ातिर

हुमैरा रहमान

जैसे कोई ज़िद्दी बच्चा कब बहले बहलाने से

हुमैरा रहमान

पहले तो ख़्वाब ज़ेहन में तश्कील हो गया

हीरानंद सोज़

कहीं पे माल-ओ-दुनिया की ख़रीदार की बातें हैं

हिना हैदर

ये कैसा क़ाफ़िला है जिस में सारे लोग तन्हा हैं

हिमायत अली शाएर

शम्अ के मानिंद अहल-ए-अंजुमन से बे-नियाज़

हिमायत अली शाएर

'शाइर' उन की दोस्ती का अब भी दम भरते हैं आप

हिमायत अली शाएर

किस लिए कीजे किसी गुम-गश्ता जन्नत की तलाश

हिमायत अली शाएर

हर क़दम पर नित-नए साँचे में ढल जाते हैं लोग

हिमायत अली शाएर

हारून की आवाज़

हिमायत अली शाएर

ये शहर-ए-रफ़ीक़ाँ है दिल-ए-ज़ार सँभल के

हिमायत अली शाएर

मंज़िल के ख़्वाब देखते हैं पाँव काट के

हिमायत अली शाएर

मैं जो कुछ सोचता हूँ अब तुम्हें भी सोचना होगा

हिमायत अली शाएर

हर क़दम पर नित-नए साँचे में ढल जाते हैं लोग

हिमायत अली शाएर

इस अक़्ल की मारी नगरी में कभी पानी आग नहीं बनता

हिलाल फ़रीद

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