हमीं में रहते हैं वो लोग भी कि जिन के सबब
ज़मीं बुलंद हुई आसमाँ के होते हुए
Wasi Shah
Rahat Indori
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Gulzar
Anwar Masood
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
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Sharabi Poetry
Friends Poetry
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यही लौ थी कि उलझती रही हर रात के साथ
वही चराग़ बुझा जिस की लौ क़यामत थी
बारहवाँ खिलाड़ी
एक हम ही तो नहीं हैं जो उठाते हैं सवाल
मेरा मालिक जब तौफ़ीक़ अर्ज़ानी करता है
हर इक से पूछते फिरते हैं तेरे ख़ाना-ब-दोश
शिकम की आग लिए फिर रही है शहर-ब-शहर
जैसा हूँ वैसा क्यूँ हूँ समझा सकता था मैं
शहर-ए-गुल के ख़स-ओ-ख़ाशाक से ख़ौफ़ आता है
डूब जाऊँ तो कोई मौज निशाँ तक न बताए
दुख और तरह के हैं दुआ और तरह की
ये वक़्त किस की रऊनत पे ख़ाक डाल गया