लोग Poetry (page 6)

जहाँ कुछ लोग दीवाने बने हैं

यज़दानी जालंधरी

कुछ लोग जो नख़वत से मुझे घूर रहे हैं

यावर अब्बास

पर्दा आँखों से हटाने में बहुत देर लगी

यासमीन हामिद

रेत के इक शहर में आबाद हैं दर दर के लोग

यासीन अफ़ज़ाल

पहाड़ जैसी अज़्मतों का दाख़िला था शहर में

याक़ूब यावर

हम अपनी पुश्त पर खुली बहार ले के चल दिए

याक़ूब यावर

मुसाफ़िरों के ये वहम-ओ-गुमाँ में था ही नहीं

याक़ूब तसव्वुर

किस मुँह से कहें गुनाह क्या हैं

वज़ीर अली सबा लखनवी

आया जो मौसम-ए-गुल तो ये हिसाब होगा

वज़ीर अली सबा लखनवी

ज़ेहन-ए-रसा की गिर्हें मगर खोलने लगे

वज़ीर आग़ा

इस गिर्या-ए-पैहम की अज़िय्यत से बचा दे

वज़ीर आग़ा

धार सी ताज़ा लहू की शबनम-अफ़्शानी में है

वज़ीर आग़ा

शाम तक सुब्ह की नज़रों से उतर जाते हैं

वसीम बरेलवी

भला ग़मों से कहाँ हार जाने वाले थे

वसीम बरेलवी

बदले हुए हालात से मायूस न होना

वाक़िफ़ राय बरेलवी

मेरे होंटों का अभी ज़हर तिरे जिस्म में है

वक़ार ख़ान

कुएँ जो पानी की बिन प्यास चाह रखते हैं

वक़ार हिल्म सय्यद नगलवी

मौसम को भी 'वक़ार' बदल जाना चाहिए

वक़ार फ़ातमी

जो सोचते रहे वो कर गुज़रना चाहते हैं

वक़ार फ़ातमी

बरसों बा'द मिला तो उस ने हम से पूछा कैसे हो

वक़ार फ़ातमी

शमएँ रौशन हैं आबगीनों में

वामिक़ जौनपुरी

सुनो ये ग़म की सियह रात जाने वाली है

वाली आसी

मिल भी जाते हैं तो कतरा के निकल जाते हैं

वाली आसी

जिन की यादें हैं अभी दिल में निशानी की तरह

वाली आसी

यूँ तो तन्हाई में घबराए बहुत

वकील अख़्तर

मुद्दत हुई है मदह-ए-हसीनाँ किए हुए

वहीदुद्दीन सलीम

मुद्दत हुई है मदह-ए-हसीनाँ किए हुए

वहीदुद्दीन सलीम

मेरी दीवानगी-ए-इश्क़ है इक दर्स-ए-जहाँ

वाहिद प्रेमी

ग़ैर-मुमकिन है कि मिट जाए सनम की सूरत

वाहिद प्रेमी

दश्त की उड़ती हुई रेत पे लिख देते हैं लोग

वहीद अख़्तर

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