लोग Poetry (page 5)

बम फटे लोग मरे ख़ून बहा शहर लुटे

ज़हीर ग़ाज़ीपुरी

यूँ तो होते हैं मोहब्बत में जुनूँ के आसार

ज़हीर देहलवी

तल्ख़ शिकवे लब-ए-शीरीं से मज़ा देते हैं

ज़हीर देहलवी

रात भर फ़ुर्क़त के साए दिल को दहलाते रहे

ज़हीर अहमद ज़हीर

जो ज़ेहन ओ दिल में इकट्ठा था आस का पानी

ज़हीर अहमद ज़हीर

रखा है बज़्म में उस ने चराग़ कर के मुझे

ज़फ़र सहबाई

रखा है बज़्म में उस ने चराग़ कर के मुझे

ज़फ़र सहबाई

ऐ हम-सफ़र ये राह-बरी का गुमान छोड़

ज़फ़र सहबाई

नवा-ए-हक़ पे हूँ क़ातिल का डर अज़ीज़ नहीं

ज़फ़र कलीम

खिड़की से महताब न देखो

ज़फ़र कलीम

घर से निकाले पाँव तो रस्ते सिमट गए

ज़फ़र कलीम

मोम के लोग कड़ी धूप में आ बैठे हैं

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

सहरा का सफ़र था तो शजर क्यूँ नहीं आया

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

आइना देखें न हम अक्स ही अपना देखें

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

ज़िंदा भी ख़ल्क़ में हूँ मरा भी हुआ हूँ मैं

ज़फ़र इक़बाल

कुछ दिनों से जो तबीअत मिरी यकसू कम है

ज़फ़र इक़बाल

किस नए ख़्वाब में रहता हूँ डुबोया हुआ मैं

ज़फ़र इक़बाल

हवा-ए-वादी-ए-दुश्वार से नहीं रुकता

ज़फ़र इक़बाल

दिल को रहीन-ए-बंद-ए-क़बा मत किया करो

ज़फ़र इक़बाल

बस एक बार किसी ने गले लगाया था

ज़फ़र इक़बाल

सिलसिले के बाद कोई सिलसिला रौशन करें

ज़फ़र गोरखपुरी

मिरा क़लम मिरे जज़्बात माँगने वाले

ज़फ़र गोरखपुरी

जो आए वो हिसाब-ए-आब-ओ-दाना करने वाले थे

ज़फ़र गोरखपुरी

उन की महफ़िल में 'ज़फ़र' लोग मुझे चाहते हैं

यूसुफ़ ज़फ़र

आँखों में तिरे जल्वे लिए फिरते हैं हम लोग

यूसुफ़ ज़फ़र

वादी-ए-नील

यूसुफ़ ज़फ़र

पुकारता हूँ कि तुम हासिल-ए-तमन्ना हो

यूसुफ़ ज़फ़र

हम गरचे दिल ओ जान से बेज़ार हुए हैं

यूसुफ़ ज़फ़र

है गुलू-गीर बहुत रात की पहनाई भी

यूसुफ़ ज़फ़र

बे-सदा क्यूँ गुज़रते हो आवाज़ दो

यूसुफ़ तक़ी

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