बे-सदा क्यूँ गुज़रते हो आवाज़ दो
अब भी कुछ लोग अंदर मकानों में हैं
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Rahat Indori
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(878) Peoples Rate This
बरसों बअ'द जो देखा उस को सर पर उलझा जोड़ा था
शब पलंग पर हाँपते साए रहे
दिल में जब कभी तेरी याद सो गई होगी
झूट के पाँव
आओ पुरानी याद के शो'लों में ताप लें
घुटी घुटी ही सही मेरी चाह ले लेना
उसी यक़ीन उसी दस्त-ओ-पा की हाजत है
रात चौपाल और अलाव मियाँ
वाहिमा
इतना करम कि अज़्म रहे हौसला रहे
खाँसती मद्धम सी इक आवाज़ जब से खो गई