आओ पुरानी याद के शो'लों में ताप लें
कितने हैं हाथ सर्द मुलाक़ात की तरह
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झूट के पाँव
इतना करम कि अज़्म रहे हौसला रहे
हाल कुछ अब के जुदा है तिरे दीवानों का
मिरे भी सुर्ख़-रू होने का इक मौक़ा निकल आता
ख़ुद-फ़रेबी
ऐ पड़ोसी तू बता हम को तो कुछ होश नहीं
वैसे तो थे यार बहुत पर किसी ने मुझे पहचाना था
तेरी यादें भी नहीं ग़म भी नहीं तू भी नहीं
दर्द की ख़ुशबू से ये महका रहा
ख़ुद-शनासी
मैं जीना चाहता हूँ मगर
पटरियों की चमकती हुई धार पर फ़ासले अपनी गर्दन कटाते रहे