ऐ पड़ोसी तू बता हम को तो कुछ होश नहीं
था हमारा भी कोई घर तिरे घर से पहले
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खाँसती मद्धम सी इक आवाज़ जब से खो गई
शब पलंग पर हाँपते साए रहे
उसी यक़ीन उसी दस्त-ओ-पा की हाजत है
इंतिबाह
मिरे भी सुर्ख़-रू होने का इक मौक़ा निकल आता
वैसे तो थे यार बहुत पर किसी ने मुझे पहचाना था
आओ पुरानी याद के शो'लों में ताप लें
हाल कुछ अब के जुदा है तिरे दीवानों का
लम्हा लम्हा फैलती जाती है रात
तेरी यादें भी नहीं ग़म भी नहीं तू भी नहीं
जाने कितनी देर चलेगी साथ मिरे चमकीली धूप