लोग Poetry (page 7)

मावरा

वहीद अख़्तर

अँधेरा इतना नहीं है कि कुछ दिखाई न दे

वहीद अख़्तर

आँख जो नम हो वही दीदा-ए-तर मेरा है

वहीद अख़्तर

क्या कहें क्या लिखें

वहीद अहमद

कोई बस्ती कि मुझ में बस्ती है

वहीद अहमद

एल्बम

वहीद अहमद

अब हम चराग़ बन के सर-ए-राह जल उठे

विश्वनाथ दर्द

कुछ लोग दिल की आड़ में रू-पोश हो गए

विश्मा ख़ान विश्मा

जिन का सूझा न कुछ जवाब हमें

विकास शर्मा राज़

ज़रा लौ चराग़ की कम करो मिरा दुख है फिर से उतार पर

विकास शर्मा राज़

क़ाफ़िले से अलग चले हम लोग

विकास शर्मा राज़

उजड़ के घर से सर-ए-राह आ के बैठे हैं

वारिस किरमानी

बहुत दिनों में हम उन से जो हम-कलाम हुए

वारिस किरमानी

ऐ सबा निकहत-ए-गेसू-ए-मुअंबर लाना

वारिस किरमानी

आशिक़ हुए तो इश्क़ में होश्यार क्यूँ न थे

वारिस किरमानी

आसमाँ से सहीफ़े उतरते रहे

उषा भदोरिया

एक कहानी

उरूज जाफ़री

बस्ता-लब था वो मगर सारे बदन से बोलता था

उर्फ़ी आफ़ाक़ी

गर क़यामत ये नहीं है तो क़यामत क्या है

उम्मीद फ़ाज़ली

मक़्तल-ए-जाँ से कि ज़िंदाँ से कि घर से निकले

उम्मीद फ़ाज़ली

कब तक इस प्यास के सहरा में झुलसते जाएँ

उम्मीद फ़ाज़ली

पुरानी चोट मैं कैसे दिखाऊँ

त्रिपुरारि

अश्क-दर-अश्क वही लोग रवाँ मिलते हैं

त्रिपुरारि

आइना मिलता तो शायद नज़र आते ख़ुद को

तौसीफ़ तबस्सुम

मैं तिरे हिज्र से निकलूँगा तो मर जाऊँगा

तौक़ीर तक़ी

इन सुलगती हुई साँसों को नहीं देखते लोग

तौक़ीर तक़ी

बदन में रूह की तर्सील करने वाले लोग

तौक़ीर तक़ी

सूरत-ए-इश्क़ बदलता नहीं तू भी मैं भी

तौक़ीर तक़ी

रूठ कर आँख के अंदर से निकल जाते हैं

तौक़ीर तक़ी

लफ़्ज़ की क़ैद से रिहा हो जा

तौक़ीर तक़ी

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