लोग Poetry (page 4)

पेच दे ज़ुल्फ़-ए-अम्बरीं न कहीं

ज़ेबा

जाग के मेरे साथ समुंदर रातें करता है

ज़ेब ग़ौरी

उजड़ी हुई बस्ती की सुब्ह ओ शाम ही क्या

ज़ेब ग़ौरी

सितमगरों का तरीक़-ए-जफ़ा नहीं जाता

ज़ेब ग़ौरी

शहर में हम से कुछ आशुफ़्ता-दिलाँ और भी हैं

ज़ेब ग़ौरी

जाग के मेरे साथ समुंदर रातें करता है

ज़ेब ग़ौरी

है सदफ़ गौहर से ख़ाली रौशनी क्यूँकर मिले

ज़ेब ग़ौरी

गुल-पोश बाम-ओ-दर हैं मगर घर में कुछ नहीं

ज़ौक़ी मुज़फ्फ़र नगरी

दिल का मौसम ज़र्द हो तो कुछ भला लगता नहीं

ज़मीर अज़हर

कमाँ पे चढ़ के ब-शक्ल-ए-ख़दंग होना पड़ा

ज़मीर अतरौलवी

पलकों पे तैरते हुए महशर तमाम-शुद

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

मुद्दत हुई न मुझ से मिरा राब्ता हुआ

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

इश्क़ में तेरे जंगल भी घर लगते हैं

ज़किया ग़ज़ल

मेरी बर्बादियों की ये तस्वीर

ज़ख़मी हिसारी

क़ाइल भला हों नामा-बरी में सबा के ख़ाक

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

न आए सामने मेरे अगर नहीं आता

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

हक़ीक़तों को फ़साना नहीं बनाती मैं

ज़हरा क़रार

हक़ीक़तों को फ़साना नहीं बनाती मैं

ज़हरा क़रार

क़तरा-ए-आब को कब तक मिरी धरती तरसे

ज़ाहिदा ज़ैदी

कल रात बहुत ज़ोर था साहिल की हवा में

ज़ाहिद मसूद

मिज़ाज-ए-शे'र को हर दौर में रहा महबूब

ज़ाहिद कमाल

एक अवामी नज़्म

ज़ाहिद इमरोज़

एक वीरान गाँव में

ज़ाहिद डार

ज़र्द गुलाबों की ख़ातिर भी रोता है

ज़हीर रहमती

दिल लगा कर पढ़ाई करते रहे

ज़हीर रहमती

बरगुज़ीदा हैं हवाओं के असर से हम भी

ज़हीर रहमती

आईने मद्द-ए-मुक़ाबिल हो गए

ज़हीर रहमती

उन्हीं की हसरत-ए-रफ़्ता की यादगार हूँ मैं

ज़हीर काश्मीरी

तू अगर ग़ैर है नज़दीक-ए-रग-ए-जाँ क्यूँ है

ज़हीर काश्मीरी

हवा-ए-हिज्र चली दिल की रेगज़ारों में

ज़हीर काश्मीरी

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