गंतव्य Poetry (page 21)

'रियाज़' इक चुलबुला सा दिल हो हम हों

रियाज़ ख़ैराबादी

जिस दिन से हराम हो गई है

रियाज़ ख़ैराबादी

रहा असीर कई साल नक़्श-ए-पा की तरह

रिफ़अत सुलतान

मोहब्बत में वफ़ा वालों को कब ईज़ा सताती है

रिफ़अत सेठी

तजस्सुस

रिफ़अत सरोश

घर को अब दश्त-ए-कर्बला लिक्खूँ

रिफ़अत सरोश

गली गली मिरी वहशत लिए फिरे है मुझे

रिफ़अत सरोश

चाँद वीरान है सदियों से मिरे दिल की तरह

रिफ़अत सरोश

सफ़र इक दूसरे का एक सा है

रेनू नय्यर

सफ़र इक दूसरे का एक सा है

रेनू नय्यर

जो ख़ुद न अपने इरादे से बद-गुमाँ होता

रज़ा लखनवी

उन की निगाह-ए-नाज़ के क़ाबिल कहें जिसे

रज़ा जौनपुरी

फिर राह दिखा मुझ को ऐ मशरब-ए-रिंदाना

रज़ा जौनपुरी

मकीं और भी हैं मकाँ और भी हैं

रज़ा जौनपुरी

जिंस-ए-गिराँ का मैं हूँ ख़रीदार दोस्तो

रज़ा जौनपुरी

दिल को मामूर करो जज़्ब-ओ-असर से पहले

रज़ा जौनपुरी

है ग़नीमत ये फ़रेब-ए-शब-ए-व'अदा ऐ दिल

रज़ा हमदानी

तबीब देख के मुझ को दवा न कुछ बोला

रज़ा अज़ीमाबादी

लड़खड़ाना भी है तकमील-ए-सफ़र की तम्हीद

रविश सिद्दीक़ी

वो बर्क़-ए-नाज़ गुरेज़ाँ नहीं तो कुछ भी नहीं

रविश सिद्दीक़ी

उम्र-ए-अबद से ख़िज़्र को बे-ज़ार देख कर

रविश सिद्दीक़ी

तुझ पे खुल जाए कि क्या मेहर को शबनम से मिला

रविश सिद्दीक़ी

नक़ाब-ए-शब में छुप कर किस की याद आई समझते हैं

रविश सिद्दीक़ी

क्या सितम कर गई ऐ दोस्त तिरी चश्म-ए-करम

रविश सिद्दीक़ी

ख़िरद को गुमशुदा-ए-कू-ब-कू समझते हैं

रविश सिद्दीक़ी

कौन कहता मुझे शाइस्ता-ए-तहज़ीब-ए-जुनूँ

रविश सिद्दीक़ी

एक लग़्ज़िश में दर-ए-पीर-ए-मुग़ाँ तक पहुँचे

रविश सिद्दीक़ी

उम्र भर पेश-ए-नज़र माह-ए-तमाम आते रहे

रौनक़ रज़ा

न जाने कब से मैं गर्द-ए-सफ़र की क़ैद में था

रौनक़ रज़ा

ता-ब-कै मंज़िल-ब-मंज़िल हम मुसाफ़िर भागते

रऊफ़ ख़ैर

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