गंतव्य Poetry (page 22)

किसी दराज़ में रखना कि ताक़ पर रखना

रासिख़ इरफ़ानी

ख़िज़ाँ की बात न ज़िक्र-ए-बहार करते हैं

रशक खलीली

यक़ीं से फूटती है या गुमाँ से आती है

राशिद तराज़

किन सराबों का मुक़द्दर हुईं आँखें मेरी

राशिद तराज़

कभी यूँ भी करो शहर-ए-गुमाँ तक ले चलो मुझ को

राशिद तराज़

अपने होने का कोई साज़ नहीं देती है

राशिद तराज़

ज़िक्र-ए-तूफ़ाँ भी अबस है मुतमइन है दिल मिरा

रशीद शाहजहाँपुरी

जिसे उड़ान के बदले थकान देता है

राशिद राही

शहर-ए-ग़फ़लत के मकीं वैसे तो कब जागते हैं

राशिद मुफ़्ती

और ज़रा कज मिरी कुलाह तो होती

राशिद मुफ़्ती

हुदूद का दाएरा

राशिद आज़र

सुब्ह-ए-क़यामत जिन होंटों पे दिलासे देखे

राशिद आज़र

समझ रहा है तिरी हर ख़ता का हामी मुझे

राशिद आज़र

मरते नहीं अब इश्क़ में यूँ तो आतिश-ए-फ़ुर्क़त अब भी वही है

राशिद आज़र

चाहत तुम्हारी सीने पे क्या गुल कतर गई

राशिद आज़र

सर-ब-सर शाख़-ए-दिल हरी रहेगी

राशिदा माहीन मलिक

है निहायत सख़्त शान-ए-इम्तिहान-ए-कू-ए-दोस्त

रशीद रामपुरी

कुछ साए से हर लहज़ा किसी सम्त रवाँ हैं

रशीद क़ैसरानी

कुछ साए से हर लहज़ा किसी सम्त रवाँ हैं

रशीद क़ैसरानी

नहीं था ज़ख़्म तो आँसू कोई सजा लेता

रशीद निसार

दिल हमारा जानिब-ए-ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम आएगा

रशीद लखनवी

हिरास है ये अज़ल का कि ज़िंदगी क्या है

रशीद कौसर फ़ारूक़ी

हम ने तो इस इश्क़ में यारो खींचे हैं आज़ार बहुत

रसा चुग़ताई

सर से उतरे नहीं फूल मंज़िल की धुन हम-सफ़र बात सुन

रऊफ़ अमीर

तुम्हारा क़ुर्ब वजह-ए-इज़्तिराब-ए-दिल न बन जाए

रम्ज़ आफ़ाक़ी

रूह में घोर अंधेरे को उतरने न दिया

राम रियाज़

मिरी निगाह में ये रंग-ए-सोज़-ओ-साज़ न हो

राम कृष्ण मुज़्तर

सफ़र है मिरा अपने डर की तरफ़

राजेन्द्र मनचंदा बानी

फिर वही तू साथ मेरे फिर वही बस्ती पुरानी

राजेन्द्र मनचंदा बानी

मुझ से इक इक क़दम पर बिछड़ता हुआ कौन था

राजेन्द्र मनचंदा बानी

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