मतलब Poetry (page 4)

न वो फ़रियाद का मतलब न मंशा-ए-फ़ुग़ाँ समझे

सीमाब अकबराबादी

ग़रज़ कुफ़्र से कुछ न दीं से है मतलब

मोहम्मद रफ़ी सौदा

ने ग़रज़ कुफ़्र से रखते हैं न इस्लाम से काम

मोहम्मद रफ़ी सौदा

गदा दस्त-ए-अहल-ए-करम देखते हैं

मोहम्मद रफ़ी सौदा

तुझ को मेरे क़ुर्ब में पा कर जलते हैं दीवाने लोग

सत्यपाल जाँबाज़

एक पुल बनाया जा रहा है

सरवत हुसैन

दरख़्त मेरे दोस्त

सरवत हुसैन

जश्न-ए-आज़ादी

सरफ़राज़ शाहिद

वही मक़्बूल लीडर और डिप्लोमैट होता है

सरफ़राज़ शाहिद

हर इक दिल यहाँ है मोहब्बत से आरी

सरदार सोज़

गरेबाँ हम ने दिखलाया उन्हों ने ज़ुल्फ़ दिखलाई

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

ब-जुज़ साया तन-ए-लाग़र को मेरे कोई क्या समझे

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

यूँ भला तुम पर सजा कब आइने में देखना

सलमान सिद्दीक़ी

हर्फ़-ए-बे-मतलब की मैं ने किस क़दर तफ़्सीर की

सलीम शाहिद

कुछ हैं मंज़र हाल के कुछ ख़्वाब मुस्तक़बिल के हैं

सलीम अहमद

दिल ही मेरा फ़क़त है मतलब का

सख़ी लख़नवी

अँधेरे दिन की सफ़ारत को आए हैं अब के

सज्जाद बाक़र रिज़वी

पंक्चुवेशन

साइमा असमा

वस्ल की बात और ही कुछ थी

सैफ़ुद्दीन सैफ़

ज़िंदगानी का ये पहलू कुछ ज़रीफ़ाना भी है

साहिर सियालकोटी

लोग औरत को फ़क़त जिस्म समझ लेते हैं

साहिर लुधियानवी

तेरे महल में कैसे बसर हो इस की तो गीराई बहुत है

साहिर होशियारपुरी

दर्द-ए-दिल भी कभी लहू होगा

साहिर होशियारपुरी

किताब-ए-दर्स-ए-मजनूँ मुसहफ़-रुख़्सार-ए-लैला है

साहिर देहल्वी

जो ला-मज़हब हो उस को मिल्लत-ओ-मशरब से क्या मतलब

साहिर देहल्वी

जो ला-मज़हब हो उस को मिल्लत-ओ-मशरब से क्या मतलब

साहिर देहल्वी

पस-ए-रौशनी

साग़र ख़य्यामी

नींद आई ही नहीं हम को न पूछो कब से

सदा अम्बालवी

नया शगूफ़ा इशारा-ए-यार पर खिला है

सबा नक़वी

उस का वादा ता-क़यामत कम से कम

सबा अकबराबादी

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