गरेबाँ हम ने दिखलाया उन्हों ने ज़ुल्फ़ दिखलाई
हमारा समझे वो मतलब हम उन का मुद्दआ' समझे
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तुम जाओ रक़ीबों का करो कोई मुदावा
आशिक़-मिज़ाज रहते हैं हर वक़्त ताक में
हैं बहुत देखे चाहने वाले
ऐ शैख़ अपना जुब्बा-ए-अक़्दस सँभालिये
काली घटा कब आएगी फ़स्ल-ए-बहार में
जिस का राहिब शैख़ हो बुत-ख़ाना ऐसा चाहिए
शैख़ चल तू शराब-ख़ाने में
ब-जुज़ साया तन-ए-लाग़र को मेरे कोई क्या समझे
धर के हाथ अपना जिगर पर मैं वहीं बैठ गया
उन बुतों से रब्त तोड़ा चाहिए
खोला दरवाज़ा समझ कर मुझ को ग़ैर